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रघुवंश
267 उत्तर गिरि पर हनुमानजी को तथा दक्षिण गिरि पर विभीषण जी को स्थापित
किया। 2. मारुति :-[मरुतोऽपत्यम्-इञ्] हनुमान का विशेषण, भीम का विशेषण।
मारुति सागरं तीर्णः संसारमिव निर्ममः। 12/60 हनुमानजी उसी प्रकार समुद्र को लाँघ गए, जैसे निर्मोही पुरुष संसार-सागर को पार कर जाता है। स मारुति समानीतमहौषधिहत व्यथः। 12/78 हनुमानजी तत्काल संजीवनी बूटी ले आए, जिसके पिलाते ही लक्ष्मण की सारी
पीड़ा जाती रही। 3. हनुमत :-[हनु (नू) + मतुप्] हनुमान।
शंके हनूमत्कथित प्रवृत्तिः प्रत्युद्गतो मां भरतः ससैन्यः। 13/64 हनुमानजी से मेरे आने का समाचार पाकर भरत सेना लेकर मेरा स्वागत करने आ रहे हैं।
मार्ग
1. अध्वन् :-[अद् + क्वनिप् दकारस्य धकारः] रास्ता, सड़क, मार्ग।
अपि लंधितमध्वानं बुबुधे न बुधोपमः। 1/47 पंडितों के समान बुद्धिमान तथा लुभावने दिखाई देने वाले राजा दिलीप इतने रम गए थे, कि यह भी न भान हो सका कि मार्ग कब निकल गया। बलैरध्युषितास्तस्य विजिगीषोर्गताध्वनः।। 4/46 वहाँ से चलते-चलते वे बहुत दूर निकल गए और विजय चाहने वाले रघु के सैनिक मार्ग में। निवेशयामास विलंधिताध्वा क्लान्तं रजोधूसर केतु सैन्यम्। 5/42 अपनी उस थकी हुई सेना का पड़ाव डाला, जिसकी पताकाएँ मार्ग की धूल लगने से मटमैली हो गई थीं। एवं तयोरध्वनि दैवयोगादासेदुषो सख्यम चिन्त्य हेतु। 5/60 इस प्रकार दैवयोग से अज और प्रियंवद की मार्ग में ही मित्रता हो गई। तैः शिवेषु वसतिर्गताध्वभिः सायमाश्रमतरुष्वगृह्यत। 11/33 वे मार्ग में कुछ दूर चले तो सांझ हो गई और वे उस आश्रम के सुन्दर वृक्ष तले टिक गए।
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