Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 01
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 441
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश 429 6. सभार्या :- पत्नी सहित, पत्नी के साथ। तस्मै सभ्याः सभार्याय गोप्चे गुप्तमेन्द्रियाः। 1/55 वहाँ के सभ्य संयमी मुनियों ने अपने रक्षक सपत्नीक राजा दिलीप का सम्मान के साथ स्वागत किया। सपर्या 1. अर्हण :-[अर्ह + भावे ल्युट्] पूजा, आराधना, सम्मान। आससाद मुनिरात्मनस्ततः शिष्यवर्ग परिकल्पिताहणम्। 11/23 वहाँ से मुनि अपने उस आश्रम पर पहुँचे, जहाँ शिष्यों ने पूजा की सब सामग्री इकट्ठी कर रखी थी। 2. पूजा :-[पूज् + अ + टाप्] पूजा, सम्मान, आराधना। सीतास्वहस्तोपहृताग्यपूजान् रक्षः कपीन्द्रान्विससर्ज रामः। 14/19 राम ने उन राक्षसों और वानर-सेनापतियों को विदा किया, जिनकी चलते समय सीताजी ने स्वयं अपने हाथों से पूजा की। 3. बलि :-[बल् + इन्] पूजा, आराधना। तत्सैकतोत्सङ्गबलि क्रियाभिः संपत्स्यते ते मनसः प्रसादः। 14/76 उसमें स्नान करके तुम उसकी रेती पर देवताओं को बलि दिया करो, इससे तुम्हारा मन प्रसन्न रहेगा। 4. सपर्या :-[सपर् + यक् + अ + टाप्] पूजा, अर्चना, सम्मान, सेवा। वत्सोत्सुकापि स्तिमिता सपर्या प्रत्यग्रहीत्सेति ननन्दतुस्तौ। 2/22 यद्यपि नंदिनी उस समय अपना बछड़ा देखने के लिए बहुत उतावली थी, फिर भी वह रानी से पूजा कराने के लिए खड़ी हो गई। सोऽहं सपर्या विधिभाजनेन मत्वा भवन्तं प्रभु शब्द शेषं। 5/22 आपके हाथ में मिट्टी का पात्र देखकर ही मैं समझ गया कि आपके पास 'राजा' शब्द को छोड़कर और कुछ भी नहीं बचा है। तस्या तिथीनामधुना सपर्या स्थिता सुपुत्रेष्विव पादपेषु। 13/46 जैसे सुपुत्र अपने पिता के धर्म का पालन करते हैं, वैसे ही अतिथि-सेवा का काम, उनके बदले ये आश्रम के वृक्ष करते हैं। ततः सपर्यां सपशूपहारां पुरः परार्ध्य प्रतिमागृहायाः। 16/39 For Private And Personal Use Only

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