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कालिदास पर्याय कोश कुसुमान्यपि गात्र संगमात्प्रभवन्त्यायुरपोहितुं यदि। 8/44 जब फूल भी शरीर को छू कर प्राण ले सकते हैं। तनु :-[तन्+उ] शरीर, व्यक्ति। वार्द्धके मुनिवृत्तीनां योगेनान्ते तनुत्यजाम्। 1/8 बुढ़ापे में मुनियों के समान जंगलों में रहकर तपस्या करते थे और अन्त में परमात्मा का ध्यान करते हुए अपना शरीर छोड़ते थे। तनु प्रकाशेन विचेयतारका प्रभातकल्पा शशिनेव शर्वरी। 3/2 वे पौ फटते समय की उस रात जैसी लगने लगीं, जब थोड़े से तारे बच रह जाते हैं और चंद्रमा भी पीला पड़ जाता है। तनुत्यजां वर्मभृतां विकोशैव॒हत्सु दंतेष्वसिभिः पतद्भिः । 7/48 जो कवचधारी योद्धा अपने प्राण हथेली पर लिए लड़ रहे थे, उन्होंने नंगी तलवार से जब हाथियों के दाँतों पर चोट की। न हि तेन पथा तनुत्यजस्तनयावर्जित पिंडकांक्षिणः। 8/26 जो महात्मा योगबल से शरीर त्याग करके मुक्त हो जाते हैं, उन्हें अपने पुत्रों से पिंडदान की आवश्यकता नहीं रहती। रोगोपसृष्ट तनुदुर्वसतिं मुमुक्षः प्रायोपवेशनमतिर्नृपतिर्बभूव। 8/94 वे रोगी शरीर से छुटकारा पाने के लिए अनशन करने लगे। चिराय संतमे समिद्भिरग्नि यो मंत्रपूतां तनुमप्यहौषीत्। 13/45 बहुत दिनों तक अग्नि को समिधा से तृप्त करके, अन्त में अपना पवित्र शरीर भी उसमें हवन कर दिया था। क्वचिच्च कृष्णोरगभूषणेव भस्माँग रागा तनुरीश्वरस्य। 13/57 कहीं पर भस्म लगाए हुए शिवजी के शरीर के समान दिखाई पड़ रही हैं, जिस पर काले-काले सर्प लिपटे हुए हों। तत्त्वावबोधेन विनापि भूयस्तनुत्यजां नास्ति शरीरबन्धः। 13/58 शरीर त्यागकर वे तत्त्व ज्ञानी न होने पर भी, संसार के बंधनों से छूट जाते हैं। अयोध्या सृष्टलोकेव सद्यः पैतामही तनुः। 15/60 वह अयोध्या ऐसी जान पड़ने लगी, मानो तत्काल सृष्टि करने वाले ब्रह्मा की
चतुर्मुखी मूर्ति हो। 5. देह :-[दिह+घञ्] शरीर।
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