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रघुवंश
419 वशिष्ठमन्त्रोक्षणजात्प्रभावादुदन्वदाकाश महीधरेषु। 5/27 वशिष्ठ जी के मंत्रों से पवित्र किया हुआ रघु का रथ, समुद्र, आकाश और पर्वत कहीं भी आ-जा सकता था। महीधरं मार्गवशादुपेतं स्रोतोवहा सागरगामिनी व। 6/52
जैसे समुद्र की ओर बहती हुई नदी बीच में पड़ते हुए पहाड़ को छोड़ जाती है। 7. महीध्र :-[मह् + अच् + ङीष् + ध्रः] पहाड़।
महीध पक्षव्यपरोपणो चितं स्फुरत्प्रभामण्डलमस्त्रमाददे। 3/60 पर्वतों के पंख काटने वाले अग्नि के समान चमकीले वज्र को उठा लिया। पक्षाच्छदा गोत्र भिदात्तगन्थाः शरण्यमेनं शतशो महीधाः। 13/7 उन सैकड़ों पहाड़ों ने भी इसकी शरण ली थी, जिनके पंख इन्द्र ने काट दिए थे
और जिनका अभिमान इन्द्र ने चूर कर दिया था। 8. शिखरी :-[शिखरमस्त्यस्य इनि] चोटी वाला, पहाड़।
शमितपक्षबलः शतकोटिना शिखरिणां कुलिशेन पुरंदरः। 9/12
जैसे इंद्र ने अपने सौ नोकों वाले वज्र से पर्वतों के पंख काट दिए थे। 9. शिलोच्चय :-[शिल् + टाप् + उच्चयः] पहाड़, विशाल चट्टान।
न पादपोन्मूलनशक्ति रंहः शिलोच्चये मूर्च्छति मारुतस्य। 2/34 देखो! वायु का जो वेग वृक्षों को जड़ से उखाड़ फेंकने की शक्ति रखता है, वह पर्वत का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। शिलोच्चयोऽपि क्षितिपालमुच्चैः प्रीत्या तमेवार्थमभाषतेव। 2/51 तब पर्वत की कंदरा से भी उसकी गूंज सुनाई पड़ी, मानो पर्वत ने भी प्रसन्न
होकर सिंह की ही बातों का समर्थन किया हो। 10. शैल :-[शिला + अण्] पर्वत, पहाड़, चट्टान, बड़ा भारी पत्थर।
स्तनाविव दिशस्तस्याः शैलौ मलयद१रौ। 4/51 दर्दुर नाम की उन पहाड़ियों पर पड़ाव डाला, जो ऐसे दिखाई पड़ते थे, मानो चंदन लगे हुए दक्षिण दिशा के दो स्तन हों। ततो गौरीगुरुं शैलमारुरोहाश्व साधनः। 4/71 वहाँ से वे अपने घोड़ों की सेना लेकर हिमालय पहाड़ पर चढ़ गए। शैलोपमः शैवलमञ्जरीणां जालानि कर्षनुरसा स पश्चात्। 5146 वह पहाड़ के समान लंबा-चौड़ा हाथी अपनी छाती से सेवार को अपने साथ खींचता हुआ, तट पर आ पहुंचा।
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