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रघुवंश
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दूषयामास कैकेयी शोकोष्णैः पार्थिवाश्रुभिः। 12/4 पर निष्ठुर कैकेयी ने ऐसा चक्र चलाया कि उत्सव राजा दशरथ के आँसुओं से लिप गया। सा साधु साधारण पार्थिवर्द्धः स्थित्वा पुरस्तात्पुरुहूत भासः। 16/5 अपनी संपत्ति से सज्जनों का उपकार करने वाले, इन्द्र के समान तेजस्वी राजा कुश के आगे वह स्त्री खड़ी हो गई। आत्मापराधं नुदती चिराय शुश्रूषया पार्थिव पादयोस्ते। 16/85 हे राजन! यह अपना अपराध मिटाना चाहती है, इसलिए इसे आप अपनी पत्नी के रूप में ग्रहण कर लीजिए, जिससे यह जीवन भर आपकी सेवा कर सके। पश्चात्पार्थिवकन्यानां पाणिमग्राहयत्पिता। 17/3 पिता कुश ने फिर राजाओं की कन्याओं से उसका विवाह करा दिया। एवमिन्द्रिय सुखानि निर्विशन्नन्य कार्य विमुखः स पार्थिवः। 19147 इस प्रकार वह कामी राजा राज-काज छोड़कर इन्द्रिय-सुखों का रस लेता हुआ। तं प्रमत्तमपि न प्रभावतः शेकुराक्रमितुमन्य पार्थिवाः। 19/48 इतना व्यसन में लीन होने पर भी दूसरे राजा उसके राज्य पर आक्रमण नहीं करते
थे।
28. पुरुषाधिराज :-[पुरिदेहे शेते :-शी + ड पृषो० तारा०, पुर् + कुषन् +
अधिराजः] राजा। इति प्रगल्भं पुरुषाधिराजो मृगाधिराजस्य वचो निशम्य। 2/41
सिंह की ऐसी ढीठ बातें सुनकर जब राजा को यह विश्वास हो गया कि। 29. पृथिवीक्षिति :-[प्रथ् + किंवन्, संप्रसारणम् + क्षिति] राजा।
सेनानिवेशान्पृथिवीक्षितोऽपि जग्मुर्विभातग्रहमन्दभासः। 7/2 दूसरे राजा लोग भी प्रात: काल के तारों के समान अपना उदास मुँह लेकर अपने
डेरों में यह कहते हुए चले गए कि। 30. पृथिवीपति :-[प्रथ् + षिवन्, संप्रसारणम् + पतिः] राजा।
स चतुर्धा बभौ व्यस्तः प्रसवः पृथिवी पतेः। 10/84
राजा की चारों संतानें ऐसी शोभा दे रही थीं मानो। 31. पृथिवीपाल :-[प्रथ् + षिवन्, संप्रसारणम् + पाल:] राजा।
बुभुजे पृथिवीपालः पृथिवीमेव केवलाम्। 15/1
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