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कालिदास पर्याय कोश
5. रश्मि : - [ अश् + मि धातोरुट्, रश् + मि वा ] किरण, प्रकाशकिरण | दशरश्मिशतोपमद्यतिं यशसा दिक्षु दशस्वपि श्रुतम् । 8/29
जो दस सौ किरणों वाले सूर्य के समान तेजस्वी थे, जिनका यश दसों दिशाओं के फैला था ।
लोकमन्धतमसात्क्रमोदितौ रश्मिभिः शशिदिवाकराविव । 11/24 जैसे सूर्य और चन्द्रमा बारी-बारी से अपनी किरणों से पृथ्वी का अँधेरा दूर करते हैं ।
दुःख
1. ताप :- [ तप्+घञ] गर्मी, कष्ट, संताप, वेदना ।
शल्यप्रोतं प्रेक्ष्य सकुम्भं मुनिपुत्रं तापादंत: शल्य इवासीत् क्षितिपोऽपि ।
9/75
देखा कि नरकट की झाड़ियों से बिंधा हुआ, घड़े पर झुका हुआ किसी मुनि का पुत्र पड़ा है। उसे देखकर उनको ऐसा कष्ट हुआ, मानो इन्हें भी बाण लग गया हो ।
2. दुःख : - [ दुष्टानिखानि यस्मिन् दुष्टं खनति - खन्+उ, दुःख + अच् वा तारा०] दुःख, पीड़ा, वेदना, खेद ।
अदृश्यत त्वच्चरणारविन्दविश्लेष दुःखादिव बद्धमौनम् । 13 / 23
चुपचाप पड़ा हुआ वह ऐसा लग रहा था, मानों तुम्हारे चरणों से अलग हो जाने के दुःख से चुप हो गया हो।
सा लुप्तसंज्ञा न विवेद दुःखं प्रत्यागतासुः समतप्यतान्तः । 14/56 मूर्छा आ जाने से उन्हें उस समय तो दुःख नहीं हुआ, पर जब वे मूर्छा से जगीं, तब उनके हृदय में बड़ी व्यथा हुई ।
आत्मानमेव स्थिर दुःख भाजं पुनः पुनर्दुष्कृतिनं निनिन्द | 14/57
अपने दुःख के लिए बार-बार वे अपने भाग्य को ही कोसने लगीं। 3. व्यलीक : - [ विशेषेण अलति-वि+अल्+कीकन् ] असुखद ।
सत्त्रान्ते सचिवसखः पुरस्क्रियाभिर्गुर्वीभिः शमितपराजय व्यलीकान् ।
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यज्ञ समाप्त हो जाने पर रघु ने और उनके मंत्रियों ने हारे हुए राजाओं का बड़ा सत्कार किया और उनके मन में हारने की जो लाज थी. उसे दर कर दिया।