Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 01
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 433
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश पृथ्वी पर इतना रक्त बहा कि नीचे की धूल दब गई और जो धूल उठ चुकी थी, वह वायु के सहारे इधर-उधर फैलकर। 2. रक्त :-[रञ्ज करणे क्तः] रुधिर। वीक्ष्य वेदियथ रक्तबिन्दुभिर्बन्धुजीवपृथुभिः प्रदूषिताम्। 11/25 इतने में ही यज्ञ की वेदी पर बन्धुजीव के फूल के समान बड़ी-बड़ी रक्त की बूंदे देखकर ऋषियों को बड़ा आश्चर्य हुआ। 3. रुधिर :-[रुध् + किरच्] लहू, रक्त। शस्त्रक्षताश्वद्विपवीरजन्मा बालारुणोऽभूदुधिर प्रवाहः। 7/42 शस्त्रों से घायल घोड़ों, हाथियों और योद्धाओं के शरीर से निकला हुआ लहू प्रातः काल के सूर्य की लाली जैसा लगने लगा। दिनकराभिमुखा रणरेणवो रुरुधिरे रुधिरेण सुरद्विषाम्। 9/23 कई बार सूर्य पर छाई हुई युद्ध की धूल राक्षसों के रक्त से सींचकर दबाई है। आयुर्वेहातिगैः पीतं रुधिरं तु पतत्रिभिः। 12/48 बाण तो उनकी आयु पीने के लिए गए थे, उनका रक्त तो पिया पक्षियों ने। शोणित :-[शोण + इतच्] लाल, लोहित, रुधिर। उपस्थिता शोणितपारणा मे सुरद्विषश्चान्द्रमसी सुधेव। 2/39 जैसे चन्द्रमा का अमृत राहु को मिलता है, वैसे ही मेरे रक्त के पीने के समय पर यह गौ आ गई है। पपावनास्वादितपूर्वमाशुगः कुतूहलेनेव मनुष्यशोणितम्। 3/54 वहाँ का रक्त बड़े चाव से पिया, क्योंकि उसे अभी तक मनुष्य के रक्त का स्वाद तो मिला ही नहीं था। रणक्षितिः शोणितमहाकुल्या रराज मृत्योरिव पानभूमिः। 7/49 वह युद्ध क्षेत्र मृत्युदेव के उस मदिरालय सा जान पड़ा, जिसमें बहता हुआ रक्त ही मानो मदिरा हो। क्षत्रशोणितपितृक्रियोचितं चोदयन्त्य इव भार्गवं शिवाः। 11/61 मानो क्षत्रियों के रक्त से अपने पिता का तर्पण करने वाले परशुरामजी को वे पुकार रही हों। अमर्षणः शोणित काश्या किं यदा स्पृशन्तं दशति द्विजिह्वः। 14/41 क्योंकि जब साँप पैर के नीचे दब जाता है, तब वह रक्त के लोभ से थोड़े ही डसता है, वह तो बदला लेने के लिए ही डसता है। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487