Book Title: Kalidas Paryay Kosh Part 01
Author(s): Tribhuvannath Shukl
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 468
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 456 कालिदास पर्याय कोश उन्होंने अपने साथ सेना ली और राम को ढूँढ़ने निकल पड़े, जब मार्ग के आश्रम वासियों ने उन्हें वे वृक्ष दिखलाए। स प्रतस्थेऽरिनाशाय हरिसैन्यैरनुदुतः। 12/67 वे वानरों की अपार सेना साथ लेकर शत्रु का संहार करने लगे। शङ्के हनूमत्कथितप्रवृत्तिः प्रत्युद्गतो मां भरतः ससैन्यः। 13/64 ऐसा जान पड़ता है कि हनुमान जी से मेरे आने का समाचार सुनकर, भरत सेना लेकर मेरा स्वागत करने आ रहे हैं। समौलरक्षो हरिभिः ससैन्यस्तूर्यस्वनानन्दित पौरवर्गः। 14/10 वृद्ध मंत्रियों, राक्षसों और वानरों को साथ लेकर राम ने अपनी सेना के साथ उस राजधानी में पैर रखे, जहाँ के निवासी तुरही आदि बाजों को सुन-सुनकर बड़े प्रसन्न हो रहे थे। अनुदुतो वायुरिवाभ्रवृन्दैः सैन्यैरयोध्याभिमुखः प्रतस्थे। 16/25 जैसे वायु के पीछे-पीछे बादल चलते हैं, वैसे ही पीछे चलने वाली सेना के साथ शुभ मुहूर्त में अयोध्या के लिए चल दिए। तं क्लान्तसैन्यं कुलराजधान्याः प्रत्युज्जगामोपवनान्तवायुः। 16/36 अयोध्या के उपवनों में फूले हुए वृक्षों की डालियों को हिलाते हुए वायु ने, आगे बढ़कर सेना के साथ थके हुए कुश का स्वागत किया। स्कन्द 1. कुमार :-[कम् + आरन्, उपधायाः उत्वम्] युद्ध के देवता कार्तिकेय, पुत्र, बालक, राजकुमार, युवराज। ब्राह्मे मुहूर्ते किल तस्य देवी कुमार कल्पं सुषुवे कुमारम्। 5/36 रघु की रानी की कोख से तड़के ब्राह्ममुहूर्त में कार्तिकेय के समान तेजस्वी पुत्र जन्मा। 2. गुह :-[गुह् + क] कार्तिकेय का विशेषण। भूयिष्ठमासीदुपमेयकान्तिर्मयूर पृष्ठाश्रयिणा गुहेन। 614 उस पर बैठे हुए वे ऐसे सुन्दर लग रहे थे, मानो कार्तिकेय अपने मोर पर चढ़े बैठे हों। 3. नगरन्ध्रकर :-[न गच्छति :-न + गम् + ड (नगः) + रन्ध्रकरः] कार्तिकेय का विशेषण। For Private And Personal Use Only

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