Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 24
________________ HHHHE R E garARDARDan जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/22 इस प्रकार वह जितनी ही बार भी बावड़ी में उतरा और वहाँ सूर्य का प्रकाश नहीं देख कर वापस आ जाता । अन्त में बिना पानी पिये दुःखी हो गया और अन्तिम बार बावड़ी में उतरा; परन्तु वापिस नहीं आ सका। वहाँ ही उसका मरण हो गया। मृत्यु के उपरान्त उसने (तूने) धनमित्रा के गर्भ से - प्रीतिंकर के रूप में जन्म लिया है। यह तेरा अन्तिम शरीर है। तू कर्मों का अभाव करके मोक्ष प्राप्त करेगा।" इस प्रकार मुनिराज के श्रीमुख से पूर्वभव का वृतान्त सुनकर राजा प्रीतिंकर को वैराग्य हो गया। उसे विषय भोगों से विरक्ति हो गई। वह अपने पुत्र प्रियंकर को राज्य देकर 5 भगवान वर्द्धमान स्वामी के समवसरण में गया और उसने त्रिलोक पूज्य भगवान के दर्शन करके जिनदीक्षा ले ली। तत्पश्चात् प्रीतिंकर मुनिराज ने शुक्लध्यान द्वारा केवलज्ञान प्राप्त किया। उनके पवित्र उपदेशामृत से संसार के जीव दुःख से छुटकारा पाकर सुखी हुए। प्रीतिंकर मुनिराज का यह चरित्र पढ़कर भव्यजन चिरकाल तक सम्यग्ज्ञान प्राप्त कर अपना मोक्षमार्ग प्रशस्त करते रहेंगे। एक पशु पर्याय में उत्पन्न शियार ने केवल रात्रिभोजन त्यागकर मनुष्य योनि में जन्म लिया और सुख भोगकर मोक्ष प्राप्त किया। इसी प्रकार भव्यजीवों को भी अनन्तसुख की प्राप्ति के लिये जैनधर्म में दृढ़ विश्वास कर अपने आत्मा की साधना और परमात्मा की आराधना कर अपना जीवन सफल करना चाहिए। -आराधना कथाकोष मेंसेसंक्षिप्त सार

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