Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 50
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 15/48 इन्द्र ने कहा - 'अभयकुमार की श्रद्धा कोई छुईमुई का पेड़ नहीं, जो उंगली से मुरझा जाय ।' उसी समय देव ने राजगृही में विक्रिया से नागदेव का मन्दिर बनाया और नगर में प्रसिद्धि कर दी कि नगर के बाहर एक नागदेव का मन्दिर अपने आप · प्रगट हुआ है। वहाँ जाकर जो उनकी भक्तिभाव से पूजा करता है, उसकी मनोकामना परी हो जाती है । - यह समाचार सुनकर सारी राजगृह नगरी उसके दर्शन करने टूट पड़ी। अभयकुमार को भी समाचार मिला, किन्तु वे क्यों आने लगे ? मन्त्री वगैरेह ने बहुत समझाया किन्तु अभयकुमार टस से मस नहीं हुए । कुछ समय बाद क्या देखते हैं कि पूरे राजभवन और राजसभा में सर्प ही सर्प भाग दौड़ कर रहे हैं। यह उपद्रव देखकर सब ने मिलकर अभयकुमार को बहुत समझाया, किन्तु उन्होंने कहा - मेरा मस्तक सच्चे देव - शास्त्र - गुरुको छोड़कर और किसी के आगे नहीं झुक सकता है। यदि इन्होंने काट लिया तो एक बार ही मरण होगा और वह मरण का समय भी निश्चित है, जब होना है तभी होगा । अतः इनसे डर कर क्या मैं किसी कुदेव की पूजा करने लगूँ ? यह कदापि नहीं हो सकता। इतने में राजकुमार और रानी को सर्प ने डस लिया, किन्तु अभयकुमार ने मस्तक नहीं झुकाया । अभयकुमार की अपूर्व दृढ़ता को देखकर देव ने अपना असली रूप प्रगट कर क्षमायाचना की और राजकुमार व रानी की मूर्छा भी समाप्त हो गई।

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