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__जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/60 है, जब मौत आती है। उसे दुनिया की कोई शक्ति नहीं रोक सकती। बड़ेबड़े योद्धा और तीर्थंकर भी उस समय को एक मिनिट आगे पीछे नहीं कर सके। हाँ यह कहिये तो अवश्य ठीक है कि आप को जीने की फुरसत नहीं है। आप जो दिन रात यन्त्र की तरह हाय हाय में लगे रहते हैं, भला ये भी कोई जीवन है ? भिखारी तो फिर भी शाम को जो मांग कर लाता है, वह सुख चैन से बैठ कर खा लेता है; किन्तु आपको तो शांति से बैठकर खाने की भी फुरसत नहीं । हाँ कोई सरकारी पचड़ा पड़ जाये, विवाह शादी आ जाये, मित्र लोगों की टोली आ जाये तो घंटों का समय गप-शप में व्यर्थ व्यतीत हो जायेगा, किन्तु अपनी आत्मा की सच्ची सुख शान्ति के विषय में सोचने के लिये चौबीस घण्टे में एक घण्टे का भी समय नहीं निकाल सकते।
यह सब सुनकर सेठ साहब को झुंझलाहट आ गई, वे किंचित्र रोषभाव में आकर बोल उठे - अजी तुमने भी कहाँ की टाँय-टाँय लगा रखी है। अजी इन सब कार्यों के लिये तो बुढ़ापे का समय पड़ा है, उसी समय धर्म कर्म किये जाते हैं, अभी तो हमारे कमाने-खाने के दिन हैं, सो कमा खा लेने दो। धर्म-कर्म-स्वाध्याय-मनन ये सब तो बुढ़ापे में देखे जायेंगे। __मित्र ने कहा – सेठ साहब किसके पास बुढ़ापे का प्रमाण पत्र है कि बुढ़ापा आयेगा ही ? क्या पता अभी थोड़ी देर में ही क्या हो जाय ? दूसरे बुढ़ापे में तो तृष्णा और बढ़ जाती है, इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती हैं। संस्कार कुछ रहता नहीं है। इससे उस समय तो और महान अशांति रहती है। सेठ साहब
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