Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 66
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/64 तब ज्ञानघन ने कहा - मैं इस गाँव से भोजन लाता हूँ। तबतक आप इसी वृक्ष के नीचे बैठिये। वह एक वृक्ष के नीचे सो गया। वहाँ नेपाल का राजा कार्यवश प्रधानमंत्री जिनविजय से मिलने दिल्ली आ रहा था। नेपाल नरेश भी उसी वृक्ष के नीचे ठहर गया। राजा ने मंत्रीजी को पहचान लिया और बड़े आदर के साथ सुन्दर बिस्तर पर सुला दिया। इतने में ज्ञानघन भोजन लेकर वापस आ गया। वह जिनविजय को न देखकर सोचने लगा प्रधानमंत्री भूख से घबड़ाकर चले गये हैं। उसने नेपाल नरेश से उनके विषय में पूछताछ की तो राजा ने बताया कि मंत्रीजी पलंग पर आराम कर रहे हैं। ज्ञानघन ने जिनविजय को जगा कर पूछा - यह सब क्या हुआ ? मंत्रीजी ने कहा – “पुण्य की सजा भोग रहा हूँ।" ज्ञानघन सब कुछ समझ गया। सेठ की दर्शन प्रतिज्ञा (15) सेठ की दर्शन प्रतिज्ञा किसी गांव में एक सेठजी रहते थे। वे अपने धंधे और दुकानदारी में इतने फंसे रहते थे कि कभी न तो मंदिर जाते, न कभी भगवान के दर्शन करते। एक दिन एक मुनि महाराज उस गाँव में पधारे। सबकी देखा-देखी इन सेठजी ने भी मुनि महाराज को अपने घर विधिपूर्वक आहार कराया। मुनि महाराज का नियम था कि वे जिसके यहाँ आहार लेने जाते, उसे किसी न किसी तरह की प्रतिज्ञा अवश्य करा लेते। मुनि महाराज ने दर्शन करने की प्रतिज्ञा लेने को कहा। सेठ बगलें झाँकने लगा, तब सेठजी के मन की बात मुनि महाराज समझ गये। सेठजी से मुनिराज ने कहा - 'अच्छा तुम्हारी दुकान के सामने जो रहता है, प्रात: सबसे पहले उसी के दर्शन करो, बाद में और कोई काम करो। सेठजी की दुकान के सामने कुम्हार रहता था। सेठजी इसी को सबेरे सबसे पहले देखते और तब अपनी दुकान खोलते।। एक दिन कुम्हार सबेरा होने से पहले ही मिट्टी लाने गाँव के बाहर चला गया। सेठजी ने जब कुम्हार को घर पर नहीं देखा तो मुनिराज की बात याद आ गई। कुम्हारिन से पूछकर सेठजी वहीं पहुँचे जहाँ कुम्हार मिट्टी को खोद रहा

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