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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/30 इसप्रकार कहने लगी कि “सुरम्य देश के श्रीपुर नगर के राजा का नाम श्रीधर है, उसकी रानी का नाम श्रीमती है और उसकी जयावती नाम की पुत्री है। उसके जन्म के समय ही निमित्तज्ञानियों ने कहा था कि यह चक्रवर्ती की पट्टरानी होगी और उस चक्रवर्ती की पहचान यही है कि जो नट और नटी के भेद को जानता हो वही चक्रवर्ती होगा। हम लोग उसी की परीक्षा करने के लिए आये हैं, पुण्योदय से हम लोगों ने निधि के समान इच्छानुसार आपके दर्शन किये हैं। मेरा नाम प्रियरति है, यह पुरुष का आकार धारण कर नृत्य करने वाली मदनवेगा नाम की मेरी पुत्री है और स्त्री का वेष धारण करनेवाला यह वासव नाम का नट है। यह सुनकर राजा ने सन्तुष्ट होकर उस स्त्री को योग्यतानुसार सन्तोषित किया पश्चात् सभी अपने पिता केवली गुणपाल की वन्दना के लिए सुरगिरि नामक पर्वत की ओर चल दिए।
इधर मार्ग में कोई पुरुष घोड़ा लेकर आ रहा था, उस पर आसक्तचित्त हो श्रीपाल ने सवारी की और उस घोड़े को दौड़ाया। कुछ दूर तक तो वह घोड़ा पृथ्वी पर दौड़ा, फिर अपना विद्याधर का आकार प्रगट कर उसे आकाश में ले उड़ा। वहाँ रहनेवाले वनदेवता ने उस विद्याधर को ललकारा, देवता की ललकार से डरे हुए उस अशनिवेग नाम के विद्याधर ने अपनी भेजी हुई पर्णलघु विद्या से उस कुमार श्रीपाल को रत्नावर्त नाम के पर्वत के शिखर पर छोड़ दिया। परन्तु उस देव ने भी श्रीपाल को वहाँ से सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने के बजाय वहीं छोड़ दिया; क्योंकि उस देव को अपने ज्ञान से यह पता चल गया था कि श्रीपाल को इस रत्नावर्त पर्वत पर अनेक प्रकार से धन, यश, स्त्री आदि का लाभ होने वाला है।
श्रीपाल की माता कुबेरश्री एवं भाई वसुपाल अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार श्री गुणपाल केवली के दर्शन करने पहुँच गये। वहाँ वसुपाल ने अपने भाई श्रीपाल के हरण के सम्बन्ध में केवलीप्रभु से समाधान चाहा, तब केवली भगवान की दिव्यवाणी में आया कि “श्रीपाल अनेक प्रकार के लौकिक लाभ अर्जित कर शीघ्र ही वापिस आयेंगे।"
"केवली के वचन कभी झूठ नहीं होते, यह बात जग प्रसिद्ध है; क्योंकि