Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 71
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-1 जाग सके तो जाग -15/69 जाग सके तो जाग 18 राजा सत्यंधर विजया रानी को पाकर सभी राज्यकाज मंत्री काष्ठांगार को सौंपकर दिन-रात वासनाओं में मग्न रहने लगे। एक दिन अवसर पाकर मंत्री राजा सत्यंधर को समाप्त करने की योजना बना डाली। राजा को पता चलने पर उन्होंने गर्भवती विजया रानी को मयूरयंत्र (एक प्रकार का निश्चित अवधि तक हवा में उड़ने वाला वाहन) में बिठाकर उड़ा दिया । राजा के बहुत संघर्ष करने के बाद भी धोखे से मंत्री ने राजा को मार दिया । इधर वह मयूरयंत्र एक श्मशान में जाकर गिरा, जहाँ पर विजय रानी ने पुत्र जीवंधरकुमार को जन्म दिया। बालक के पालन-पोषण के लिए साधनविहीन असहाय विजया रानी बालक को वहीं पर छोड़कर पास में छिपकर बालक के भाग्य की परीक्षा करने लगी। इतने में सेठ गंधोत्कट अपने मृत बालक का अंतिम संस्कार करने श्मशान में आया था । वहाँ उसने इस सुन्दर सुडौल भाग्यशाली बालक जीवंधर को पाकर उसका यथाविधि पालनपोषण किया। · बालक के बड़े होने पर गंधोत्कट ने गुरु आर्यनंदी के पास उसे पढ़ने के लिए भेज दिया । जीवंधरकुमार जब पढ़कर पूरी तरह निष्णात हो गए, तब एक दिन गुरु आर्यनंदी ने अपने शिष्य जीवंधरकुमार से कहा- बेटे ! जिस राज्य में तुम नगण्य प्रजा बनकर भटक रहे हो, वह राज्य तुम्हारा ही है। तुम इस राज्य के अधिपति राजा हो । तुम्हारे राज्य पर मंत्री काष्ठांगार ने अन्यायपूर्वक तुम्हारे. पिता को मारकर अधिकार कर रखा है। नौकर मालिक बना हुआ है और मालिक तुच्छ प्राणी । यह सुनते ही जीवंधरकुमार का क्षत्रियत्व जाग उठा । वे काष्ठांगार पर आक्रमण करने के लिए तैयार हो गये। यह देखकर गुरु आर्यनंदी ने कहा शिष्य ! अब तुम शास्त्र एवं शस्त्र दोनों ही विद्याओं में निपुण हो चुके हो, तब क्या मुझे गुर दक्षिणा नहीं दोगे ? -

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