Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 46
________________ ज्ञान-वैराग्य वर्द्धक प्रेरक प्रसंग ज्ञातव्य है कि अब आगे आने वाले सभी प्रेरक प्रसंग स्व. पण्डित प्रकाशचन्दजी 'हितैषी' दिल्ली के सम्पादकत्व में निकलने वाले मासिक पत्र “सन्मति सन्देश" में से संकलित किये गये हैं। -आभार सुख-दुःख दोनों (1) में जीव स्वयंभू है महाराजा जयसिंह जंगल में प्यास से तड़फ उठे, प्यास से उनका कंठ . सूखा जा रहा था। कुछ चले ही थे कि कुछ दूर पर एक झोपड़ी दिखाई दी। झोपड़ी के सामने पहुँच कर उस गरीब किसान से राजा ने पानी माँगा। किसान ने राजा को घड़े का ठण्डा पानी पिलाया। पश्चात् दूध और चावल की मीठी खीर खिलाई। राजा को आज का भोजन पानी बड़ा स्वादिष्ट लगा। राजा ने एक कागज में कुछ लिख कर किसान को देते हुए कहा – जब कभी तुम पर कुछ संकट पड़े तो मेरे पास आना । मैं जयपुर में रहता हूँ। इतना कहकर राजा चला गया। किसान ने वह कागज अपनी स्त्री को दे दिया। ___ कुछ दिन बाद बड़े जोर से सूखा पड़ा। अनाज के बिना लोग एक-एक दाने को तरसने लगे। चारों ओर त्राहि-त्राहि मची थी। ऐसे कठिन समय में किसान की स्त्री ने राजा के वचन की याद दिलाई। ___किसान कुछ दिन में जयपुर पहुँच कर वहाँ राजभवन में राजा के सामने भी पहुँच गया। राजा उस समय भगवान की पूजा कर रहा था। बहुत देर तक राजा की क्रिया देखकर किसान कहने लगा - राजन् ! बार-बार हाथ इकट्ठा करते और फिर जमीन में सिर पटकते हो, इस बीमारी का कुछ इलाज कराओ। राजा ने समझाया- 'भाई ! यह बीमारी नहीं, भगवान से प्रार्थना कर रहा था।

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