Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 53
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/51 सेठजी ने पुत्र से सब वृत्तान्त सुनकर कहा- 'बेटा ! इस लोहे पर तो जंग कीट आदि लगा हुआ है। इसलिए पहले इसे दूर करो, तभी लोहे का स्वर्ण बन सकता है। अब की बार लड़के ने वैसा ही किया तो लोहा स्वर्णरूप में परिवर्तित हो गया। बस इसी तरह जबतक आत्मा से मिथ्यात्व (उल्टी मान्यता) की जंग नहीं छूटेगी, तबतक आत्मा परमात्मा नहीं बन सकती। यदि मिथ्यात्व नहीं छूटा और धन-परिवार तथा शरीर भी छोड़ दिया तो संसार का दुःख नहीं छूट सकता। यदि मिथ्यात्व छूट गया तो और सब अपने आप छूट जायेगा। चमत्कार भक्ति का या (6) आयु कर्म के उदय का कविवर धनंजय सेठ संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड पण्डित एवं सिद्धान्त मर्मज्ञ और श्रेष्ठ कवि थे। जिनेन्द्र भक्ति से तो आपका हृदय ओत-प्रोत रहता था। आप जिनेन्द्र भक्ति इतनी तन्मय होकर करते थे कि उस समय आपको बाह्य जगत की सुध-बुध नहीं रहती थी। एक दिन जिनेन्द्र पूजा में आप तल्लीन थे, उसी समय उनके घर पर उनके बच्चे को सर्प ने डस लिया । बच्चा मुँह से झाग छोड़ने लगा। सेठानी ने अनेक इलाज कराये, किन्तु उससे कुछ लाभ नहीं हुआ। तब जिनमन्दिर में सेठ जी Pancomare -Sal

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