Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 27
________________ TITUTRAMDAUNDUADMIगणरणाAAR जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/25 नन्दीश्वर जिनालयों की पूजा करने गये थे; पश्चात् हम दोनों ने मेरु जिनालय की भी वन्दना की थी। वहाँ एक ऋद्धिधारी मुनिश्री के दर्शन किये थे और धर्मोपदेश सुनकर हमने उन मुनिराज से पूछा था कि हे स्वामी ! इस संसार से हम दोनों की मुक्ति कब होगी ?" तब मुनिराज ने कहा था – “तुम चौथे भव में मोक्ष प्राप्त करोगी।" देवी ने आगे कहा - "हे सुमति ! यह सुनकर हम दोनों अतिप्रसन्न हुए थे और हम दोनों ने मुनिराज के समक्ष एक-दूसरे को वचन दिया था कि हम में से जो पहले मनुष्यलोक में जन्म लेगा, उसे दूसरी देवी सम्बोधकर आत्महित की प्रेरणा देगी; इसलिए हे सखी! मैं स्वर्ग से उस वचन का पालन करने आई हूँ। तू इन विषय-भोगों में न पड़, संयम धारण कर और आत्महित कर ले।" विवाह-मण्डप के बीच देवी की यह बात सुनते ही बलदेव की वीरपुत्री सुमति को अपने पूर्वभव का स्मरण हुआ और वैराग्य को प्राप्त हुई। उसने अन्य सात सौ राजकन्याओं के साथ सुवृता नाम की आर्यिका के पास जिनदीक्षा ग्रहण की और आर्यिकाव्रत का पालन करके स्त्रीपर्याय छेदकर उस सुमति के जीव ने तेरहवें स्वर्ग में देवपर्याय प्राप्त की। ___ अचानक विवाह-मण्डप में ही राजकुमारी को विवाह के समय वैराग्य' . की घटना से चारों ओर आश्चर्य फैल गया। बलभद्र का चित्त भी संसार से उदास हो गया। यद्यपि उनको संयम भावना जागृत हुई, किन्तु अपने भ्राता सार ANS

Loading...

Page Navigation
1 ... 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84