Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 57
________________ - A । का सहीHAT SALES UAR जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/55 पें मुनिव्रत क्यों ले लिया ? जिसका उत्तर मैंने दिया था कि 'समय की खबर नहीं' अर्थात् समय का भरोसा नहीं है। मुनिराज ने आगे कहा कि जन्म जीवन का प्रारम्भ नहीं बल्कि धर्म को जीवन में जन्म देना जीवन का प्रारम्भ है। तुम्हारी पुत्रवधु ने 3 वर्ष से, तुम्हारे पुत्र ने 1 वर्ष से ही धर्म पहचाना और धारण किया है, इसलिए इनके जीवन केवल 3 और 1 वर्ष के हैं। तुम्हारी पत्नि के जीवन में छह माह से ही धर्म आया है, इसलिए उसकी आयु छह माह की है। जबकि तुम्हारे जीवन में धर्म ने अभी जन्म ही नहीं लिया तो तुम पैदा हुए कैसे कहला सकते हो ? ____ बस ! सेठजी को जीवन का रहस्य मिल गया और साथ ही पुत्रवधु के प्रश्नों के उत्तरों का सही समाधान। इसलिए यदि जीवन की उम्र बढ़ानी है तो धर्म को आत्मसात करना होगा। जीवन के उन मूल्यों से परिचय प्राप्त करना होगा, जो वस्तुत: मनुष्य को ऊपर उठाते हैं। __ जरा सोचो! (9) सच्चा मित्र कौन ? - एक आदमी के तीन मित्र थे। उनमें से पहले दो के प्रति उसे बहुत आदर था, अत: उनसे वह बहुत अधिक प्रेम करता था। तीसरे के प्रति उसने ध्यान नहीं दिया और न कभी उस तीसरे मित्र की चिन्ता की। ___एक बार उस आदमी पर बहुत कठिन प्रसंग आ पड़ा। उसे इस बात का निश्चय हो गया कि उसे न्यायालय में खड़ा होना पड़ेगा और उसका अनादर होगा। वह अपने पहले मित्र के पास गया और उससे अपनी सहायता करने तथा न्यायालय में चलने के लिए प्रार्थना की, लेकिन उस मित्र ने उसे साफ ठुकरा दिया। वह बोला, न्यायालय की तो बात बहुत दूर रही, मैं तुम्हारे साथ एक कदम भी नहीं चलूँगा। . ANTAR

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