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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/38
बाल-सभा
छात्र गुरुजी आज तो हम आपसे ही कहानी सुनेंगे।
गुरुजी
छात्र
गुरुजी
छात्र
गुरुजी
छात्र
गुरुजी
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गुरुजी
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छात्र
गुरुजी
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छात्र फिर तो उसने वहाँ भी बहुत नुकसान किया होगा ?
गुरुजी
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छात्र तो क्या उसे किसी ने पकड़ लिया ? वह पकड़ने वाला कौन महा
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जरूर ! आज हम आप को एक हाथी की कहानी सुनाते हैं।
गुरुजी उस हाथी का नाम क्या है ?
उस हाथी का नाम है - 'वनकेलि' ।
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हाँ! गुरुजी सुनाइए ।
पृथ्वीपाल नाम के एक राजा थे, यह वनकेलि नाम का हाथी उन्हीं का था, एक दिन वह हाथी किसी कारण क्षुब्ध होकर अपने बंधनों को तोड़कर उत्पात मचाता हुआ नगर से बाहर निकल गया, पकड़ने की हिम्मत किसी ने नहीं की ।
उसे
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फिर क्या हुआ गुरुजी ?
वह लोगों को मारता, जानवरों को पछाड़ता, चिंघाडता हुआ एक पड़ोसी नगर में घुस गया।
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हाँ ! वहाँ भी उसने लोगों को मारना शुरू कर दिया; परन्तु वह वहाँ अधिक देर तक उत्पात नहीं मचा सका ।
गया।
फिर क्या हुआ गुरुजी ?
फिर उस हाथी को लेकर उसके पूर्व के स्वामी राजा पृथ्वीपाल व वर्तमान के स्वामी राजा पद्मनाभ में युद्ध छिड़ गया। युद्ध में राजा पृथ्वीपाल का मरण हो गया और इस कारण राजा पद्मनाभ को भी वैराग्य हो गया। उन्होंने श्रीधर मुनिराज से दीक्षा ले ली। छात्र गुरुजी ! फिर उस हाथी का क्या हुआ ?
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पुरुष था ?
हाँ ! उसे वहाँ के राजा पद्मनाभ ने पकड़ लिया या यह कहो कि राजा पद्मनाभ को देखकर उस हाथी का क्रोध एकदम शान्त हो