Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 42
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/40 बालसभा संचालक - आज हमारे स्कूल के इस सत्र की अन्तिम बाल सभा है, "हम अपनी छुट्टियाँ कैसे बितायेंगे” इस सम्बन्ध में हमें आज हमारे गुरुजी बताएँगे। जबतक गुरुजी आते हैं, तबतक यदि कोई अपने विचार रखना चाहता हो, तो रख सकता है। जिनेश- मित्र मैं एक शिक्षाप्रद पौराणिक कहानी सुनाना चाहता हूँ। संचालक-आईए, माइक पर आईए। जिनेश-जैनदर्शन के जाने-माने विद्वान पण्डित टोडरमलजी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक के पृष्ठ 238 पर लिखा है कि ‘फल लगता है, सो परिणामों का लगता है मैं आज इसी बात को बताने वाली भगवान शान्तिनाथ और उनके गणधर चक्रायुध' के पूर्व भव की कहानी सुना रहा हूँ। इस कहानी के माध्यम से विवेकी जीव अपने परिणाम सुधार कर अपना मोक्षमार्ग प्रशस्त करेंगे - ऐसी मंगल भावना है। जम्बूद्वीप के विदेहक्षेत्र में ...... (इसी बीच गुरुजी आ जाते हैं।) संचालक-हमारे माननीय गुरुजी पधार चुके हैं। हम सभी करतल ध्वनि से उनका स्वागत करते हैं। (गुरुजी आकर बैठ जाते हैं।) जिनेश-अब गुरुजी आ गये हैं, अत: यदि गुरुजी इजाजत दें तो मैं अपनी बात पूरी कर दूं। गुरुजी- जरूर, तुम अपनी बात पूरी करो। हमें अच्छे कार्य कभी अधूरे नहीं छोड़ना चाहिए। जिनेश-जी गुरुजी, हाँ तो मैं कह रहा था कि जम्बूद्वीप के विदेहक्षेत्र में वत्सकावती देश है, जहाँ जैनशासन का धर्मचक्र सदा चलता रहता है। उस देश की प्रभाकरी नगरी में धर्मात्मा स्मितसागर राजा राज्य करते थे। उनके दो पुत्र थे। एक का नाम था अपराजित-बलभद्र और दूसरे का नाम था अनन्तवीर्यवासुदेव । दोनों में अत्यन्त गाढ़ भ्रातृप्रेम था। स्मितसागर राजा तो वैरागी होकर मुनि बन गए और निदानबंध कर धरणेन्द्र हुए। अपराजित-बलभद्र भी दीक्षा

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