Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 59
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/57 वृद्ध किसान बोला – ‘मुनिवर ! घर की ओर देखभाल करनेवाला कोई नहीं है, यदि घर छोड़ दूं तो घर लुट जायेगा। बच्चों की शादी करना है। अभी बहुत काम पड़े हैं। सब बाराबाट हो जायेगा।' मुनिराज यह सुनकर चले गये। कुछ दिन में वह वृद्ध मरकर कुत्ता हुआ और उसी दरवाजे पर बैठकर पहरा देता रहता। कोई अनजान आदमी आ जाता तो भौंक-भौंक कर उसको दूर भगा आता। रात-रात जागकर रखवाली करता। एक दिन फिर वही मुनिराज आये और कहने लगे – ‘भाई ! अब तो इस दशा में आकर कुछ अपने लिए कर लो।' कुत्ते ने अपनी वाणी में कहा – 'मैं घर छोड़ दूँ तो मेरे घर की रखवाली कौन करेगा ? आपके साथ फिर कभी चलूँगा।' ___एक दिन वह कुत्ता मरकर बैल हो गया। अब वह गेहूँ आदि बोझा ढोकर खूब मेहनत करता था। दूना बोझा लादा जाता, किन्तु वह बूढ़ा होकर और मार खाकर भी काम करता रहता। एक दिन वही मुनिराज फिर उस बैल को देखकर बोले - 'भाई! तुम अब तो मेरी बात मान लो। चलो मेरे साथ कुछ आत्मकल्याण करो। बैल अपनी बोली में कहने लगा - MAR WALAM 'अभी खेतों में गला पड़ा है. F C ALEM उसे कौन ढोयेगा ?' मुनिराज यह सुनकर चले गये। वह बूढ़ा बैल मरकर उसी घर में साँप बन गया। अब भी वह तिजोड़ी पर बैठा रहता। घर के लोग उसे देखकर डर जाते। एक दिन वह अपने पूर्व लड़के के पैर में लिपट गया। यह देखकर लोगों ने उसे डण्डे से मार-मारकर अधमरा कर दिया। कुछ सांस चल रही थी। ___वही मुनिराज फिर आये और कहा – 'भाई ! अब तो संभल जा। जंगल में चलकर परमात्मा का ध्यान कर। इतना सुनकर उस सर्प ने अपने प्राण छोड़ दिये और आर्तध्यान से मरकर नरक चला गया। AMITRA

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