Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

View full book text
Previous | Next

Page 82
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/80 जब तक्षशिला से सिकन्दर अपनी सेना के साथ यूनान लौटा, तब कल्याण मुनि ने भी उसके साथ विहार किया। कल्याण मुनि के साथ कौनकौन भारतीय जैन श्रावक यूनान की ओर गये, इस बात का उल्लेख इतिहास में नहीं मिलता। यूनान को जाते हुए मार्ग में बाबलिन स्थान पर दिन के तीसरे पहर 32 वर्ष 8 मास की आयु में महान विजेता सिकन्दर मृत्यु की गोद में सो गया। उसकी मृत्यु की भविष्यवाणी पहले ही कल्याण मुनि ने कर दी थी। अन्तिम समय सिकन्दर ने कल्याण मुनि के दर्शन करने की इच्छा प्रगट की और कल्याण मुनि ने उसे दर्शन दिये और धर्म उपदेश दिया। सिकन्दर ने अपनी इच्छा प्रगट की कि – “मेरे मरने के पश्चात् संसार . को शिक्षा देने के लिये मेरे खाली हाथ अर्थी से बाहर रखे जावें और मेरे जनाजे (शवयात्रा) के साथ अनेक देशों से लूटी हुई विशाल सम्पत्ति श्मशान भूमि (कब्रिस्तान) तक ले जाई जावे, जिससे जनता यह अनुभव कर सके कि आत्मा के साथ कोई सांसारिक पदार्थ नहीं जाता।" इसीप्रकार सिकन्दर की अर्थी को पहले चार राजवैद्यों ने अपने कंधे पर रखी। यह इस बात का प्रतीक था कि महान वैद्य भी मृत्यु की चिकित्सा (इलाज) नहीं कर सकते। सिकन्दर की शवयात्रा पर एक कवि ने निम्नलिखित छन्द लिखा, जो · अब तक प्रसिद्ध है - सिकन्दर शहनशाह जाता, सभी हाली वहाली थे। सभी थी संग में दौलत, मगर दो हाथ खाली थे॥ बहुत सी सम्पत्ति एकत्र की, परन्तु मरते समय वह अपने साथ कुछ न ले जा सका। परलोक जाते समय उसके दोनों हाथ खाली ही रहे। अपने जीवन में भलाई से उपार्जित किया गया पुण्य-पाप ही सबके साथ जाता है। कल्याण मुनि ने भी अपनी आयु के अन्त समय में समाधिमरण पूर्वक देह त्याग किया। उनके शव को बड़े सम्मान के साथ चिता पर रखकर जलाया गया। कल्याण मुनि के चरण-चिह्न आज भी एथेन्स नगर में एक प्रसिद्ध स्थान पर अंकित हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84