Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 15
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 31
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/29 चक्ररत्न भी कुम्हार के चाक समान (पिता-केवली, पुत्र-चक्रवर्ती, प्रपौत्र-तीर्थंकर) इस जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र की पुण्डरीकिणी नगरी में पुण्यशाली भव्यात्मा आत्मा तद्भव मोक्षगामी गुणपाल नाम के राजा राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम कुबेरश्री था। राजा गुणपाल संसार को असार जानकर गृहस्थ अवस्था का त्याग कर शुद्धोपयोगरूप मुनिधर्म अंगीकार कर आत्मसाधना करने लगे। इधर उनके दोनों पुत्र वसुपाल व श्रीपाल जब अपनी माता कुबेरश्री के साथ रहते हुए अपने राज्य का भलीप्रकार संचालन कर रहे थे। तभी एक दिन पुण्योदय से माता कुबेरश्री को वनपाल ने आकर यह शुभ व कल्याणकारी समाचार सुनाया कि सुरगिरि नामक पर्वत पर गुणपाल मुनिराज (जो इसी भव में कुबेरश्री के पति थे) को केवलज्ञान प्रगट होने से सर्वत्र आनन्द छाया हुआ है। ___यह मंगलकारी समाचार सुनकर उन्होंने प्रथम तो उन केवली भगवान को सात पैड़ चलकर नमस्कार किया, पश्चात् वनपाल को पारितोषिक देकर विदा किया और स्वयं अपने दोनों पुत्रों व सम्पूर्ण नगरवासियों सहित केवली भगवान के दर्शन-वन्दन हेतु चल पड़ी। ____ मार्ग में वे सभी एक उत्तम वन में पहुँचे जो कि अच्छे-अच्छे वृक्षों से सुशोभित हो रहा था और जिसमें किसी समय किसी वट वृक्ष के नीचे खड़े होकर महाराज जगत्पाल चक्रवर्ती ने संयम धारण किया था। आज उसी वृक्ष के नीचे एक दर्शनीय नृत्य हो रहा था, उसे दोनों भाई बड़े उत्साह से देखने लगे। देखते-देखते कुमार श्रीपाल ने कहा कि “यह स्त्री का वेष धारण कर पुरुष नाच रहा है और पुरुष का रूप धारण कर स्त्री नाच रही है। यदि यह स्त्री, स्त्री के ही वेष में नृत्य करती तो बहुत ही अच्छा नृत्य होता।" श्रीपाल की बात सुनकर नटी मूर्छित हो गयी। उसी समय अनेक उपायों से नटी को सचेत कर कोई अन्य स्त्री (नट का रूप धारण करनेवाली स्त्री की माँ, जिसका नाम प्रियरति है।) उस होनहार चक्रवर्ती श्रीपाल से विनयपूर्वक

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