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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-15/45 'किसलिये ?' – किसान ने I पूछा।
‘सुख साधन माँगने के | लिये।' – राजा ने कहा। ___'तुम भी भिखारी हो, हम तो तुमको राजा समझ रहे थे। अब हम भी भगवान से ही मांग लेंगे। तुमसे क्या मांगें ?'
भाई ! भगवान ही सबको | देता है ?'
'हम मांगेंगे तो दे देगा।' – किसान बोला। 'हाँ भाई किस्मत में होगा तो जरूर देगा।' 'फिर किस्मत देती है या भगवाम ?'
इन प्रश्नों की बौछारों में राजा भी सकपका गया। तब किसान ने सम्बोधित करते हुए कहा___ "इससे पता चलता है कि फल तो सबको अपनी स्वयं की करनी के अनुसार ही मिलता है; क्योंकि यदि भगवान देता होता तो सभी को देता, परन्तु वस्तुस्थिति तो यह है कि तो कोई किसी को कुछ नहीं दे सकता, सब स्वयंभू हैं, सब अपनी-अपनी करनी का ही फल पाते हैं।"
जिसके पास पूँजी है, उसे भी धन कमाना चाहिए और जिसके ऊपर कर्ज है, उसे भी धन कमाना चाहिए। यदि पूँजीवाला व्यक्ति धन कमायेगा तो पूँजी की वृद्धि होगी और ऋणी व्यक्ति धन कमायेगा तो कर्ज का नाश होगा। ___ इसीप्रकार जो पुण्य के उदय से सुखी है, उसे भी धर्म ही करना योग्य है और जो पाप के उदय से दुःखी है उसे भी धर्म करना योग्य है। सुखी व्यक्ति धर्म करेगा तो सुख बढ़ेगा और दुःखी व्यक्ति धर्म करेगा तो दुःख का नाश होगा। ___ इसलिए सभी अवस्थाओं में धर्म-साधन ही श्रेष्ठ है-यह तात्पर्यजानना चाहिए।
- आत्मानुशासन पद्य-18 का भावार्थ