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मेरे पूज्यपाद गुरुदेव श्री किशनलालजी म. की असीम अनुकम्पा के कारण ही मैं कुछ सेवा बजाने लायक बन सका हूँ। उन्होंने ही मुझे अबोध बाल्य अवस्था में अपने चरणों में आश्रय देकर आज इस स्थिति में पहुँचाया है अतः सबसे प्रथम उनका आभार मानते हुए उनके चरणों में श्रद्धा समेत मस्तक काता हूँ । मेरे सहयोगी मुनिराजों के सहयोग का उल्लेख करना भी मैं नहीं भूल सकता जिन्होंने मेरी हर तरह सेवा करके मुझे इस काम में सहयोग प्रदान किया।
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मेरे इस साहित्यिक कार्य में आदि से अन्त तक सहयोग देने वाले और प्रस्तुत अनुवाद और विवेचन के संशोधक और सम्पादक पं. बसन्तीलालजी नलवाया, न्यायतीर्थ के सहयोग का यहाँ उल्लेख करना अपना कर्त्तव्य समझता हूँ। उनके विद्वत्तापूर्ण सहयोग और परिश्रम के कारण प्रस्तुत संस्करण इस रूप में पाठकों के सन्मुख प्रस्तुत हो सका है।
चैत्र कृष्णा १ सं.२००६
कुन्दन भवन,
व्यावर
इस अनुवाद और विवेचन में यथाशक्य सावधानी रखते हुए भी अज्ञान से, प्रमाद से या किसी कारण से जिनदेव की आज्ञा से विपरीत प्ररूपण करने में आया हो - लिखने में आया हो तो “मिथ्या मे दुष्कृतं भूयात्” । विद्वद्वर्ग इसकी अच्छाई को ग्रहण कर, त्रुटियों के लिए सहृदयभाव से सूचना करेंगे तो उनका आभारी रहूँगा ।
यदि मेरे इस प्रयास से एक भी पाठक शुद्ध वीतराग धर्म की ओर अभिमुख हो सका तो मैं अपने • प्रयत्न को सार्थक समभूंगा । मेरा यह प्रयास ज्ञान, दर्शन और चारित्र का विकास करने वाला, धार्मिक एवं आध्यात्मिक जागृति को प्रेरणा देने वाला और नवचेतना का प्रसार व प्रचार करने वाला हो । यही मंगल कामना है ।
For Private And Personal
- सौभाग्य मुनि