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दर्शाव्यु छ, तथापि प्राचीन ग्रंथोक्त ते स्वरूप टुंकमां अने अने सामान्य होवाथी प्राकृतलोकोने उपकारक न थाय तेम धारी प्रस्तुत ग्रंथकर्ता धर्मपरीक्षकोना भेदो, तेओना चिन्हो
आदि अत्र विस्तृतपणे दर्शावशे, जेथी विशेषतया सर्वने उपकारी आ ग्रंथ थाय एज आ ग्रंथरचनानुं प्रयोजन छे. उपरोक्त प्रयोजन सिद्धि प्रकरण के ग्रंथस्थ वाक्योना बोधद्वाराए ज थाय, अन्यथा न ज थाय ए स्वाभाविक छे. अत एव अत्र बाल, मध्यम आदि धर्मपरीक्षक वर्गनुं ज्ञान प्राप्त थर्बु ते उपेयसाध्य छे, अने तेनुं पा ग्रंथ उपाय-साधन होवाथी अहीं उपायोपेयसाध्यसाधनरूप संबंध जाणवो. अहीं पाटलुं विशेष जाणवू के जगतमां ज्ञानना अर्थी लोको बे प्रकारना छे-एक तो शास्त्रकथित पदार्थोंने युक्ति अने प्रमाणद्वाराए सिद्ध कर्या पछी जेनो श्रद्धा करे-अंगीकार करे ते, अने बीजा लोको शास्त्रोक्त पदार्थों सत्य ज छे, तेमां शंका करवी निरर्थक मानी श्रद्धा करवावाला होय छे. एटले पहेला वर्गना लोको माटे अहीं उपायोपेयसाध्यसाधनरूप संबंध जाणवो अने बीजावर्ग माटे गुरुपूर्वक्रम नामनो संबंध जाणवो. " शंका समाधान"
यद्यपि ग्रंथकर्ताए प्रथम आर्यामां जेम मंगल अने प्रयोजन ए पदार्थनो स्पष्ट निर्देश कयों तेम संबंधने दर्शाववा माटे स्पष्ट उल्लेख कर्यों नथी, तो पछी अहीं पाटलुं बधुं नकामुं पेषण करवानुं शुं प्रयोजन छे ? ए शंकानुं समाधान अहीं आ प्रकारे जाण