Book Title: Aptavani Shreni 05
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ संपादकीय तत्वज्ञान की अत्यंत गहन बातें सुनने और पढ़ने में तो बहुत आई हैं। जीवन के ध्येय के शिखरों का बहुत लोगों ने तलहटी में रहकर उँगलीनिर्देश किया है! व्यवहार में, 'क्या सत्य है, क्या असत्य है, क्या चौर्य है, क्या अचौर्य है, क्या परिग्रह है, क्या अपरिग्रह है या फिर क्या हेय है और क्या उपादेय है', इनका सारा वर्णन बड़े-बड़े ग्रंथों के रूप में प्रकाशित हुआ है। परन्तु असत्य, हिंसा, चोरी, परिग्रह या हेय का मूल आधार क्या है, वह कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। उसमें भी कुछ हद तक कोई विरल ज्ञानी ही कहकर गए होंगे, किन्तु जीवन की सामान्य से सामान्य घटनाओं में कषाय सूक्ष्मरूप से किस तरह कार्य कर जाते हैं, उसका विस्फोट यदि किसीने इस कलिकाल में किया है, तो वे सिर्फ ये 'अक्रम विज्ञानी' परमकृपालु श्री दादाश्री ने! उनके माध्यम से प्रकट हुए 'अक्रम विज्ञान' में आत्मा, अनात्मा, आत्मा-अनात्मा संबंधित ज्ञान, उसी प्रकार विश्वकर्ता, जगत्नियंता जैसे गुह्य विज्ञानों का प्राकट्य तो है ही, किन्तु वह सर्वग्राह्य, और प्रत्यक्ष जीवन में अनुभवगम्य बन जाए वैसा गुप्त व्यवहार ज्ञान प्रकाशमान हो, वैसा लक्ष्य प्रस्तुत ग्रंथ में लक्षित हुआ है। वात्सल्यमूर्ति पूज्य दादाश्री की वाणी प्रवचन, व्याख्यान या उपदेशात्मक रूप से प्रवाहित नहीं होती। जिज्ञासु, मुमुक्षु या विचारकों के हृदय में से वास्तविक जीवन प्रश्नों के स्फुरण का सर्व प्रकार से समाधानयुक्त निकलनेवाली 'टेप'वाला विज्ञान है! उसमें कोई विवेचन नहीं है, न ही लम्बा-लम्बा ऊबानेवाला भाषण है! प्रश्नों के प्रत्युत्तर हृदयमर्मी होने से, बुद्धि को छिन्नभिन्न करके आत्मदर्शन में फलित करते हैं ! यही महान स्वानुभवी 'ज्ञानी पुरुष' की अपूर्व खूबी है! 'ज्ञानी पुरुष' विश्व की ओब्जर्वेटरी (वेधशाला) माने जाते है। हज़ारों लोगों के अनेक प्रश्नों के सटीक प्रत्युत्तर इस ओब्जर्वेटरी में से सहज रूप से तत्क्षण निकलते हैं, फिर वे प्रश्न तत्वज्ञान के हों, जीवन व्यवहार के हों या पशु-पक्षियों की दिनचर्या के हों!

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 216