Book Title: Magadh
Author(s): Baijnath Sinh
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal

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Page 9
________________ ( २ ) अथर्ववेद में मगध का स्पष्ट उल्लेख है :गन्धारिभ्यो मूजवद्भ्योऽङ्गेभ्यो प्रेषन् जनमिव शेवधिं तक्मनं मगधेभ्यः । परिदद्मसि ॥ — अथर्ववेद ५। २३।१४. ( हे ज्वरनाशन देव, तुम ) तक्मन ( ज्वर ) को गन्धारियों, मूजवन्त के निवासियों, अंग के रहने वालों तथा मगध के बसने वालों के पास उसी प्रकार सरलता से भेजते हो, जिस प्रकार किसी व्यक्ति या कोष को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेज देते हैं । फिर अथर्ववेद में ही : <6..... "प्रियं धाम भवति तस्य प्राच्यं दिशि । ४ श्रद्धा पुंश्चली मित्रो मागधो विज्ञानं वासो हरुष्णीषं रात्री केशा हरितौ प्रवर्त्ती कल्मलिर्मणिः ॥ ५ ॥ —अथर्ववेद १५।२।१-५. अर्थात् वात्य का प्रिय धाम प्राची दिशा । उसकी श्रद्धा स्त्री और मागध मित्र । - यह तो मगध जनपद का उल्लेख हुआ ब्राह्मण धर्म के अति प्राचीन साहित्य — वैदिक साहित्य में । अब हम यह देखें कि और किस साहित्य में—ति प्राचीन काल में मगध का जिक्र है । - प्राचीन जैन ग्रंथों में मगध जैन धर्म के अति प्राचीन ग्रन्थों में मगह का उल्लेख है । प्रज्ञापना सूत्र (१ पद), सूत्रकृतांग और स्थानांग में मगह को राजगृह का श्रार्य जनपद कहा गया है। आचारांग में मगहपुर और राजगृह का उल्लेख है । निशीथ सूत्र में उल्लेख है कि एक समय में जब तीर्थकर महावीर साकेत में धर्म प्रचार कर रहे थे, तो उन्होंने कहा किजैनों का चरित्र और ज्ञान मगध तथा श्रंग देश में अक्षुण्ण रह सकता है । -

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