Book Title: Magadh
Author(s): Baijnath Sinh
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal

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Page 55
________________ अशोक के परवर्ती मौर्य___ अशोक की मृत्यु के बाद ही आन्ध्र मगध से अलग हो गया। अब मौर्य साम्राज्य की राजनीति दण्ड-दुर्बल थी। अब वह अशोक नहीं था, जो कलिंग की भाँति ही आन्ध्र को भी पुनः मगध में रख लेता। दण्ड से रक्षित साम्राज्य, दण्ड के अभाव में बिखरने लगा। अशोक के उत्तराधिकारी बौने और कायर ही नहीं, कमजोर भी थे। अशोक के तुरत बाद कुणाल ( सुयश ) के काल में ही अशोक का पुत्र जालौक कश्मीर में मगध से अलग हो गया । दशरथ ( बन्धुपालित ) के काल में कलिंग भी मगध से अलग हो गया। जैसे इन बौने मौर्यों के हाथों ने तलवार पकड़ना सीखा ही न हो । पूर्वजों द्वारा अर्जित सम्पत्ति में से दान देना ये जानते थे। यह आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था और इसने नागार्जुनी की पहाड़ियों में आजीवकों के लिये गुहाविहार बनवाये दशरथ के बाद सम्प्रति मगध के सिंहासन पर बैठा । यह जैन था । कहा जाता है कि इसने जैन-धर्म के लिये वही काम किये, जो अशोक ने बौद्ध धर्म के लिये किया था। साम्प्रदायिक दृष्टि से यह सच हो भी सकता है। पर इसने मगध साम्राज्य को अपने गौरव पर आसीन नहीं कराया। अतः इसे अशोक-सा कहना अनुचित है । सैनिक दुर्बलता बढ़ती ही गई । सम्प्रति के बाद शालिशुक मौर्य सिंहासन पर आसीन हुना । पर इन बौने मौर्यों को दायरूप में वीरता नहीं मिली थी ; ढोंग मिला था। गार्गी संहिता के अनुसार शालिशुक "राष्ट्रमर्दी" ( देशका पीडक ) तथा “धर्मवादी ह्यधार्मिक" (धर्म की डींगे हाँकने वाला किन्तु अधर्माचारी ) था। मौर्य साम्राज्य को अपने गौरवास्पद सीमा तक ले जाने के लिये, देशविजय के लिये तो इसमें वीरता और सहस बिलकुल नहीं था। पर अहिंसा प्रधान, प्रेम प्रधान, जैन धर्म के प्रचार के लिये इसने तलवार का उपयोग किया। अशोक ने राजनीति में भी जिस तलवार का उपयोग रोक दिया था, इस कायर ने उसी तलवार का

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