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'पिक पक्षपात से बचने के सतत प्रयत्न के बावजूद भी बौद्धधर्म के प्रति उनका ज्यादा झुकाव था। इसलिए अन्य सम्प्रदायों में उनकी अालोचाना मी हुई । बौद्धधर्म को बराबर दान देते रहने में उन्होंने कोष की ओर भी ध्यान न दिया। इसी कारण उनकी दानवृत्ति पर प्रधान मन्त्री राधागुप्त को नियन्त्रण रखना पड़ा । इस कारण सम्राट अशोक बहुत दुखी हुए। इसी दुख में उन्होंने शरीर छोड़ दिया।
अशोक की नीति को आलोचना. मौर्य साम्राज्य शक्ति से अर्जित था। उसे चन्द्रगुप्त की भुजाओं ने और नीति-निष्णात चाणक्य को मेधा ने खड़ा किया था। विन्दुसार को.भी युद्धों से कम ही फुर्सत मिली थी। अनेक जनपदों और संघ-राज्यों को तोड़ कर उसने मगध साम्राज्य में मिलाया था। पर उस समय भारतीय जीवन में स्वाभिमान और शान की मात्रा भी भरपूर थी। कलिंग कुछ समय तक तो मगध साम्राज्य में था। किन्तु बिन्दुसार की मृत्यु से अशोक के राज्याभिषेक की अल्प अवधि में ही मौका मिलते ही उसने मगध साम्राज्य का जुत्रा अपने कन्धे से उतार फेंका । बाद में उसे मगध साम्राज्य में मिलाने के लिये सम्राट अशोक को विकट संग्राम करना 'पड़ा । कलिंग ने भी अपना सब कुछ होम कर मगध साम्राज्य का सामना किया। ऐसी थी, उस समय भारतीय जीवन में स्वाधीनता की प्यास । पर सिकन्दर की ठोकरों के बाद एक साम्राज्य के अन्तर्गत देश के सभी हिस्सों को लाकर, सम्पूर्ण भारत को एक राष्ट्र करना भी परम आवश्यक था। चन्द्रगुप्त और चाणक्य की यही नीति थी। मौर्य साम्राज्य में यह पराक्रमपूर्ण प्रयत्न विन्दुसार के समय तक चला। इसीलिए विन्दुसार ने अपना विरुद अमित्रघात (शत्रु को मारने वाला) रखा। पर अशोक के काल में कलिंग ने मौर्यो की सैनिक नीति को अपने प्राणों की बाजी लगा कर चुनौती दी। विजेता अशोक ने भी कलिंग को कुचल दिया।