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दिए जाते हैं। किन्तु यदि षड़यन्त्रों द्वारा कोई अघटित घटना घट जाती है, तो उसका कुछ दूसरा ही परिणाम होता है । नन्दों के काल में यही हुआ। पर चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से नन्दों का नाश कर उस सम्पूर्ण परिस्थिति को पलट दिया। पश्चिमी भारत की राजनीतिक स्थिति
जिस समय मगध में साम्राज्य गठित हो रहा था, उस समय भारत का पश्चिमी हिस्सा छोटे छोटे चौबीस राज्यों में विभक्त और असंगठित पड़ा था। इस पश्चिमी हिस्से में ही तक्षशिला में एक महान विश्वविद्यालय था। उस विश्व विद्यालय ने बड़े बड़े विद्वान् और योद्धा पैदा किये थे। पाणिनि उसी विश्वविद्यालय का था। बिम्बिसार की गणिका का पुत्र जीवक उसी विश्वविद्यालय का था, जो अपने युग का श्रेष्ठ वैद्य था। स्वयं चाणक्य भी उसी विश्वविद्यालय का था और भी बड़े बड़े. योद्धा उसी विश्वविद्यालय के थे। पर जिस हिस्से में यह विश्वविद्यालय था, उसके निवासी वीर और बलवान होकर भी राजनीतिज्ञता के अभाव में शक्तिशाली अाक्रमणकारी के खाद्य बन गये। यही कारण है कि महान सेनापति सिकन्दर की सेना भारत के पच्छिमी इलाके में घुस आयी। उसः समय तक्षशिला के शासक अाम्भी ने भारत का दर्वाजा सिकन्दर के. लिये खोल दिया। इस प्रकार देशद्रोही प्राम्भी की अवसरवादिता से सिकन्दर भारत में घुस आया । पुरु ने सिकन्दर का सामना किया; पर कुशल सैन्य संचालन और राजनीतिज्ञता के अभाव में पुरु भी परास्त. हो गया। परास्त पुरु की आत्मा भी गिर गयी। वह सिकन्दर का एक सरदार बन गया । उसने देश की भूमि को सिकन्दर के घोड़ों से रौदवाना चाहा ; पर उसी समय एक बहुत बड़ी दीवार सिकन्दर के सामने खड़ी हो गयी। पुरबिया चन्द्रगुप्त मौर्य
सिकन्दर के शिविर में एक पुरबिया युवक श्राया। वह कुछ समय