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तक सिकन्दर के साथ रहा; पर उस युवक की चाल-ढाल कुछ भिन्न किस्म की थी । सिकन्दर अब तक आम्भी और पुरु जैसों से तो मिल चुका था; पर उसने अचरज से देखा - इस निराले युवक की ओर । ग्रीक लेखकों के अनुसार वह युवक अत्यन्त दृप्त था । वह नतमस्तक होकर सिकन्दर से नहीं मिला, बल्कि अपनी अँकड़ के साथ मिला । इस पुरबिया युवक की कड़ सिकन्दर को सह्य न हो सकी । वह इसे गिरफ्तार करने की ताक में था कि युवक उसकी नीयत ताड़ गया और ग्रीक कैम्प छोड़ कर उसके पीछे चला गया । यह युवक ही चन्द्रगुप्त मौर्य था, जिसने मगध साम्राज्य के विनाश का बीड़ा उठाया था ।
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चन्द्रगुप्त मौर्य मोरिय गणतन्त्र का रहने वाला था । यह गणतन्त्रःगोरखपुर जिले में पड़ता है मोरिय जाति का उल्लेख बुद्ध और महावीर के समय में भी मिलता है । महावीर के बारह गणधरों में एक मोरिय पुत्त भी थे । इससे इतना पता लगता है कि मोरिय जाति में विद्या और वीरता, शस्त्र और शास्त्र का समादर था । चन्द्रगुप्त मौर्य का द संघर्ष कैसे हुआ, इसका ठीक-ठीक पता नहीं लगता । पर ऐसा अनुमान लगता है कि चन्द्रगुप्त पहले नन्दों की सेना में सरदार था । बुद्धि और पराक्रम से धीरे-धीरे उसकी पद-मर्यादा बढ़ती गयी । सम्भवतः वह: सेनापति हो गया। आगे चलकर राजा से किसी बात पर मतभेद हो गया । वह राजा के मन का न कर सका। राजा उससे नाराज हो गया । बिना ऐसा हुए नन्द राजा से उसकी टक्कर सम्भव नहीं । और बिना ऐसा हुए नन्दों के नाश के उपयुक्त उसका होना भी सम्भव नहीं । पर चूँकि वह व्रात्य क्षत्रिय था, और नन्दों का श्राश्रित भी रह चुका था । नन्द हीनकुल तथा हीनचरित्र थे, इसलिए अनुश्रुति में चन्द्रगुप्तः के नाम के साथ अपवाद रह गया ।
महान राजनीतिज्ञ चाणक्य
चाणक्य का नाम विष्णुगुप्त था । उसका एक नाम कौटिल्य भी