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मगध में बाहद्रथ वंश की नींव डाली। इस बार्हद्रथ वंश ने ही मगध की राजनीतिक सत्ता स्थापित की। जरासन्ध और गिरिव्रज
बाहद्रथ वंश में ही जरासन्ध नामक बड़ा प्रतापी राजा हुअा। कुछ विद्वान् जरासन्ध को वसुका पौत्र बताते हैं। जो भी हो; पर जरासन्ध का उल्लेख जैन ग्रन्थों में भी मिलता है और महाभारत में भी। जैन ग्रन्थों में मगहसिरी गणिका का उल्लेख है, जो जरासन्ध की गणिका थी (आव० चू० ४ अध्याय )। मगह सुन्दरी भी जरासन्ध की गणिका थी इसके अलावा आचारांग चूर्णि प्रथम श्रुतस्कन्ध में मगधसेना नामक एक वेश्या का उल्लेख है, जो धन नामक एक सार्थवाह पर आसक्त हो गई थी। पर उसने सम्पत्ति में मगन रहने के कारण मगधसेना की ओर ध्यान भी नहीं दिया। इस पर मगधसेना बड़ी खिन्न हुई। जरासन्ध के पूछने पर उसने कहा कि धन नामक सार्थवाह ने सम्पत्ति में मगन रहने के कारण उसके रूप और यौवन की उपेक्षा की, इसीलिए वह दुखी है। मगधसेना ने धन नामक सार्थवाह को व्यंग से अमर भी कहा है। ___ जरासन्ध बड़ा प्रतापी राजा था। उसने अंग, बंग, पुंड्र, करुष और चेदि देश को अपने वश में कर लिया था। चेदि का राजा शिशुपाल उसका प्रधान सेनापति था। अांधक-वृष्णि संघ का ज्येष्ठ (नेता) कंस उसका दामाद था। जरासन्ध एकराट राजा था। उसकी आकांक्षा भारत. सम्राट होने की भी थी। उसकी नीति साम्राज्य-विस्तार की थी। पर उस काल के महान नीतिज्ञ युगपुरुष श्रीकृष्ण से उसका वैर था। उस युग में कौरवों और पाण्डवों में भी भारतसम्राट होने की सामर्थ्य थी। श्रीकृष्ण की मैत्री पाण्डवों से थी । श्रीकृष्ण बहुत ही नीतिनिपुण थे । वह जानते थे कि तत्कालीन राजनीतिक परिस्थिति में जरासन्ध को युद्ध में नहीं जीता जा सकता और बिना जरासन्ध को मारे पाण्डवों की प्रतिष्ठा भारतसम्राट होने की सीमा