Book Title: Magadh
Author(s): Baijnath Sinh
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal

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Page 22
________________ बढ़ा । बिम्बिसार ने दोनों को माना, दानों को सराहा। बौद्ध और जैन दोनों ही धर्म वैदिक याग-यज्ञों के विरोधी थे। दोनों ही व्रात्य-परम्परा के विकसित सुमन थे। दोनों ने मनुष्य के पुरुषार्थ पर जोर दिया। दोनों ने भावी जन्मों का अाधार कर्मों को माना। दोनों ने ब्राह्मण पुरोहितों और उनकी भाषा छान्दस को अस्वीकार किया। किन्तु इस एकता के बावजूद दोनों में कुछ अन्तर भी है। बुद्ध ने प्राचीन श्रमण परम्परा को छोड़कर अपने नये मध्यम-मार्ग की स्थापना की। पर महावीर ने प्राचीन श्रमण परम्परा-पाश्वनाथ के मत, उनके विनय और संघ को स्वीकार किया, उसको परिशुद्ध किया और उसी को माना। बुद्ध ने न अत्यन्त तप को स्वीकार किया और न भोग को। पर महावीर ने तप पर जोर दिया और उसी के लिये ब्रह्मचर्य को भी अनिवार्य कहा। बुद्ध ने नित्य आत्मा को भी नहीं माना । पर महावीर ने साधना और तपस्या द्वारा जीव का-अात्मा का-परम आत्मा होना तक स्वीकार किया । पर दोनों के ब्राह्मण धर्म विरोधी रूप में विशेष अन्तर नहीं हैं। जैन, बौद्ध और जनभाषा ___ यही नहीं, इस काल में एक और भी बहुत बड़ी क्रान्ति हुई । व्रात्यों के अलावा भी एक किस्म का ब्राह्मण-विरोध उस काल में था। वह उपनिषदों का विद्रोह था । पर उपनिषदों का विद्रोह वेदों और ब्राह्मणों के विरुद्ध अभिजात क्षत्रिय वर्ग का विद्रोह था। दोनों की भाषा छन्दस् की भाषा थी, संस्कृत थी। आभिजात्य भाषा संस्कृत थी। पर जब हीन वर्गीय विद्रोह ने आन्दोलन का रूप लिया, तब जिन, बुद्ध और भागवतों ने अपने संगठनों के द्वार हीन वर्गों के लिये भी खोल दिये। महावीर और बुद्ध अभिजात वर्ग के थे। परन्तु उनका साझा, उनकी चेतना, उनकी प्रेरणा हीन वर्ग के लिये भी थी। इसीलिए उन्होंने जहाँ ब्राह्मण वर्णाश्रम धर्म का विरोध किया, वहीं उनकी भाषा-देववाणी-संस्कृत पर भी कुठाराघात किया। संस्कृत-छान्दस्-के स्थान पर उन्होंने प्राकृत

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