Book Title: Magadh
Author(s): Baijnath Sinh
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal

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Page 30
________________ ( २३ ) वर्ग की उत्पत्ति थी। वह तीसरा वर्ग उपेक्षित शुद्र वर्ग था । जैन-बौद्ध और भागवत धर्मों ने जो अपने संघों और संगठनों के द्वार वर्णेतर वर्ग के लिये खोल दिये, तो हीन वर्ग निचले स्तर से ऊपर की ओर उठा और चूँकि संख्या में वह प्रचुर था, सतह पर सर्वथा छा गया । वैष्णव भागवतों की स्थिति की ओर पाणिनि ने भी संकेत किया है। और चाहे वह वैय्याकरण बुद्धकालीन अथवा बुद्ध का पश्चात कालीन रहा हो, वह अपने उस सूत्र में बुद्ध के पूर्ववर्ती समाज की ओर निर्देश करता है, जिसमें वासुदेव और अर्जुन के अनुयायियों की प्रचुरता है । बार्हद्रथों-ब्रह्मदत्तोंहर्यङ्कों-शैशुनागों की उत्कट क्षात्र परम्परा ने ब्राह्मणों को उसी हीन वर्ग की ओर देखने और उनसे साझा करने को मजबूर कर दिया था, जिन्हें ब्राह्मणेतर संघों और संगठनों ने प्रश्रय दिया था। यह अकारण नहीं है कि शूद्र नन्द के तीन मन्त्रियों में कम से कम दो ब्राह्मण थे । महापद्म नन्द द्वारा सारे क्षत्रिय राष्ट्रों का उन्मूलन और पारिणमतः उसका 'सर्वक्षत्रान्तक' विरुद विशेष विनियोजन की परिणति थे । और उस परिणति की पूर्व परम्परा परशुराम ने स्थापित की थी, जो निश्चय नन्द के ब्राह्मण मन्त्रियों को स्वाभाविक ग्राह्य हुई । यह असम्भव नहीं कि उन्होंने उस दिशा के नन्द- नियोजित प्रयासों को न केवल प्रोत्साहित किया हो, वरन् स्वयंम् ही नियोजित और प्रस्तुत किया हो । यद्यपि वे भी इस बात को न समझ सके थे कि हीन वर्गों का उत्कर्ष, जिसका प्रतीक नम्द शासन था, ब्राह्मण-क्षत्रिय दोनों के लिये नितान्त आपत्तिजनक हो सकता था । धर्मसूत्रों और गृह्यसूत्रों की परम्परा विनष्ट हो चली । चरित्रहीनों प्रति सतर्क दृष्टि कम ओर पड़ गयी थी । व्यभिचारियों और चरित्रहीनों का बल बढ़ गया था। इससे समाज में एक विक्षोभ हुआ और परिणाम पुनर्गठित स्मार्त चेतना हुई, जिसका सुगठित रूप श्रागे चलकर शुंगों के शासन काल में खुला। हीन वर्ग के उस उत्कर्ष को, जो भारतीय श्राकाश पर तीव्रता से छाता जा रहा था, कौटिल्य ने सहज

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