Book Title: Magadh
Author(s): Baijnath Sinh
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal

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Page 32
________________ . ( २५ क्षत्रियों के हाथ से निकल कर ब्राह्मणों के हाथ में चली गयी, जो शुंगोंकण्वों-सातवाहनों के कुल में सदियों बनी रही सही, पर स्पष्ट है कि वह सत्ता नितान्त जागरूक होकर सम्हालने की थी और हम जानते हैं कि उसी प्रकार सम्हाली भी गयी, क्योंकि पुष्यमित्र को निरन्तर सेना से सान्निध्य रखना पड़ा, जिससे उसने 'सम्राट' संज्ञा की उपेक्षा कर 'सेनापति' “का विरुद अधिक श्रेयस्कर समझा। मगध में षड्यन्त्रों का जोर और परिणाम . प्रारम्भ से ही मगध में राजतन्त्री शासनपद्धति थी। इस शासनपद्धति में राजा के ही हाथों में सारी शक्ति केन्द्रित होती है । इसके केन्द्र में राजा होता है। हिन्दू समाज की आश्रम-व्यवस्था के अनुसार तो राजा अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज्य सौप कर वानप्रस्थ अथवा सन्यास ले भी सकता था यद्यपि उसमें भी बहुत कम लोगों ने इस नियम का पालन किया। 'पर मगध में तो वर्णाश्रम व्यवस्था के प्रति उपेक्षा अथवा हीन भाव था। अत: बिम्बिसार के समय में तो उसकी चर्चा ही व्यर्थ है। बिम्बिसार के कई पुत्र श्रमण हो गये ; पर बिम्बिसार सिंहासन पर ही बना रहा । आखिर उसके एक महत्वाकांक्षी पुत्र अजातशत्रु से नहीं रहा गया। उसने षड्यन्त्र कर बिम्बिसार को कैद किया और फिर राजशासन पर अधिकार कर लिया। कैद में ही बिम्बिसार की मृत्यु हो गयी। अजातशत्र के पुत्र उदयि ने भी उसी घाट अजातशत्रु को उतारा। उदयि की मी वही गति हई। चैन और बौद्ध प्रभाव ने राजाश्रय पाकर सामाजिक परिवर्तन किया। फिर उसकी प्रतिक्रिया ने नन्दों के काल में व्यापक पैमाने ‘पर षड़यन्त्र का सहारा लिया । परिणामतः शूद्र-सत्ता स्थापित हो गयी। यदि •समाज के क्रमिक विकास के परिणामस्वरूप निम्न श्रेणी ऊपर पाती है, तो उसमें सभ्यता और संस्कृति का योग रहता है । यदि समाजवादी क्रान्ति द्वारा निम्न श्रेणी ऊपर आती है-जिसकी उस सुदर अतीत में सम्भावना म्ही नहीं थी तो उसमें विरोधी शक्तियों, विरोधी वर्गों के विष के दाँत तोड़

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