Book Title: Magadh
Author(s): Baijnath Sinh
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal

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Page 29
________________ (१२२ ) परन्तु यह सर्वथा निर्विवाद तथ्य नहीं है। पाणिनि को निश्चित रूप से इसी काल में नहीं भी माना जा सकता। पर इतना स्पष्ट है कि पाणिनि इस काल में सर्व प्रसिद्ध वैय्याकरण थे। नन्दवंश का प्रतापी और महा भयानक राजा महापद्मनन्द था। यहाँ यह स्पष्ट कर देना परम आवश्यक है कि नन्दवंश और खास कर महापद्मनन्द के सम्बन्ध में तरह तरह की कथाएँ हैं। वैसे तो मगध के क्षत्रियों को उच्च क्षत्रिय माना ही नहीं गया है ; पर इस मान्यता में सिर्फ ब्राह्मण विरोध था । अर्थात् मगध के क्षत्रिय ब्रात्य थे—इस कारण ब्राह्मण मान्यता में उनके प्रति हीन दृष्टि थी: पर महापद्मनन्द के सम्बन्ध में ऐसी ही बात नहीं थी। जैन अनुश्रुति के अनुसार वह नाई द्वारा वेश्या में उत्पन्न था। पुराण उसे शुद्रा में उत्पन्न नन्दिवर्धन का पुत्र बताते हैं। समसामयिक ग्रीक लेखक उसे नाई बताते हैं। ग्रीक लेखक के अनुसार रानी एक नाई पर अनुरक्त थी। पहले रानी की कृपा से वह राजकुमारों का अभिभावक बना और बाद में राजा को मार कर स्वयं राजा बन बैठा। भारतीय इतिहास में क्रान्ति और प्रति-क्रान्ति - नवनन्दों का भारतीय इतिहास-क्षेत्र में आगमन बड़े महत्त्व का है । वस्तुतः वह केवल ऐतिहासिक महत्त्व की ही वस्तु नहीं, एक प्रकार की सामाजिक क्रान्ति का भी प्रतीक है। उसकी पृष्ठभूमि और कारणों की. ओर ध्यान कम लोगों का गया है। केवल ब्राह्मण, केवल क्षत्रिय या ब्राह्मण-क्षत्रिय प्रधान सत्ता के बावजूद किस प्रकार शूद्र सत्ता दोनों की स्थामापन्न हो गयी, यह भारतीय इतिहास की असाधारण पहेली है । ' परन्तु जैसे पहेली बूझ जाने के बाद उसकी असाधारणता नितान्त सामान्य हो जाती है, उसी प्रकार शूद्र सत्ता के आविर्भाव की पृष्ठभूमि मी नन्दों के उत्कर्ष को सर्वथा स्वाभाविक बना देती है। ब्राहम क्षत्रियों के पारस्परिक चिरकालिक संघर्ष ने देश में जिप्त स्थिति को सम्भव कर दिया था, उसी की एकान्त प्रेरणा इस तीसरे शासक

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