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से वजि संघ जीतने का उपाय जानना चाहा । इस अवसर पर बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य श्रानन्द से वजि संघ के सम्बन्ध में जो प्रश्नोत्तर किये हैं, वह संघ राज्यों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण साहित्य का एक टुकड़ा है । उससे पता लगता है कि इन गए राज्यों का क्या बल था और इनमें क्या निर्बलता थी । यदि बुद्ध श्रजातशत्रु के मन्त्री वस्सकार के सम्मुख यह चर्चा न करते, तो उनकी इस चर्चा में राजनीति की गन्ध न होती । वह चर्चा साधु होती; पर दुःख है कि बुद्ध वैसा न कर सके । एक तरह से बुद्ध ने वस्सकार को लक्ष्य कर वह चर्चा की । और उस चर्चा से ही प्रेरित होकर वस्सकार अजातशत्रु की आज्ञा से - और कूट चाल के साथ - वन संघ में गया । वहाँ जाकर उसने बुद्ध की शिक्षा के अनुकूल वजि संघ में फूट डालकर वज्जि संघ को कमजोर कर दिया । इधर अजातशत्रु ने बड़ी युक्ति से विशाल सेना एकत्र की । उसे विध्वंसक अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न किया । कहा जाता है कि 'महाशिला कंटक' और 'रथमूसल' नामक भयंकर हथियारों के साथ मौका देखकर, वस्सकार के इशारे पर उसने व संघ पर हमला किया। कुछ अर्से तक तो युद्ध चला, पर अन्त में अजातशत्रु की विजय हुई । वैशाली का विनाश हो गया अजातशत्रु ने काशी, कोसल और अवन्ति तक को जीत लिया । वस्तुतः उसी ने सर्व प्रथम मगध राष्ट्र को एक साम्राज्य का रूप दिया । युद्ध में जीतने के बाद उसकी नीति उदार होती थी । धार्मिक दृष्टि से भी उसकी नीति उदार थी । उसने सभी धर्मों के प्रति आदर और सत्कार का व्यवहार किया ; पर इसमें जरा भी सन्देह नहीं कि अजातशत्रु की विशेष श्रद्धा बुद्ध के प्रति थी । बुद्ध के प्रति इसी श्रद्धा के कारण श्रजातशत्रु ने बुद्ध की मृत्यु के बाद, उनकी अस्थियों को पाने का प्रयत्न किया और बुद्ध की अस्थियों का एक अंश उसे मिला भी । बुद्ध की अस्थियों के उस एक अंश को प्राप्त कर उसने राजगृह पास करण्ड वेणुवन के पूरब , में, उस अस्थि पर एक स्तूप खड़ा करवाया । यह स्तूप बुद्ध के प्रति
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