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( २१ ) शिशुनाग नागवंशी था। सम्भवतः इसीलिए उसे आसानी से सफलता भी मिल गयी। शिशुनाग बड़ा वीर और विजेता था। उसने अवन्ती पर अाक्रमण करके उसे जीतकर मगध साम्राज्य में मिला लिया। बाद में वत्स और कोसल की भी यही गति हुई। इस प्रकार शिशुनाग ने मगध साम्राज्य का विस्तार किया। आगे चलकर विलासिता के कारण शिशुनाग के कुल का भी विनाश हुआ और नन्दवंश को प्रतिष्ठा हुई । नन्दों का मगध . नन्दवंश में नन्दिवर्धन बड़ा प्रतापी और विजयो राजा था। उसने कलिंग देश को जीत कर मगध में मिलाया था। विजय की स्मृति में कलिंग से जिन प्रतिमा भी लाया था। कश्मीर का भी उसी ने बिजय किया था। पंजाब के प्रदेशों पर भी उसी का प्रभाव था; पर कश्मीर
और पंजाब को उसने मगध साम्राज्य में मिलाया नहीं था । नन्दिवर्धन (अथवा कालाशोक ?) ने वैशाली में अपनी दूसरी राजधानी बनायी थी। इसी के राज्यकाल में वैशाली में बौद्धों की दूसरी संगीति हुई थी। यह संगीति अथवा सम्मेलन महीनों तक होता रहा, जिसमें उस काल के प्रायः सभी प्रमुख बौद्ध भितुओं ने भाग लिया। इसी संगीति में बौद्ध धर्म के दो स्पष्ट सम्प्रदाय हो गये-एक को थेरवाद कहते हैं और दूसरे को महासांघिक । इन्ही दोनों से आगे चलकर हीनयान और महायान सम्प्रदाय की उत्पत्ति हुई। उपनिषद् काल से भारतवर्ष में यह परम्परा चली आ रही थी कि राजा राजसभा करके प्रसिद्ध विद्वानों का आदर करता था। नन्दिवर्धन के काल में भी यह सभा हुई थी। राजशेखर ने भी अपने काव्यमीमांसा में स्पष्ट कहा है कि उस काल में पाटलिपुत्र में शास्त्रकार परीक्षा हुआ करती थी। इस परीक्षा में वर्ष, उपवर्ष, पाणिनि पिंगल और व्याडी नामक विद्वान् उत्तीर्ण होकर सम्मानित हुए थे। उपवर्ष वर्ष के भाई थे। वर्ष को पाणिनि का गुरु कहा जाता है। पिंगल, छन्द शास्त्र के पंडित थे। व्याडो ने व्याकरण का संग्रह ग्रंथ लिखा था;