Book Title: Magadh
Author(s): Baijnath Sinh
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal

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Page 21
________________ ( १४ ) उसको गोसाल कहते हैं। पर पाणिनि ने मस्करी शब्द को गृह-त्यागियों के लिये माना है। इसके अनुसार लेने पर साधु गोसाल अर्थ होगा। यह याद रहे कि पाणिनि को बहुत से विद्वान ई० पू० ७ वीं शती का मानते हैं। गोसाल महत्त्वाकांक्षी भी था। इसका मत था कि जीव चौरासी लाख योनियों में चक्कर खाते-खाते परम विशुद्ध दशा में पाकर तपस्वी होता है और मोक्ष पाता है। इससे पहले ही प्रयत्न करके कोई मोक्ष नहीं पा सकता । यह जीवन का रास्ता इतना नपा तुला मानता था कि उसमें अच्छे और बुरे कर्मों से कोई भी अन्तर नहीं पड़ता था। शायद इसीलिए यह संयम पर भी विशेष जोर नहीं देता था। पूर्ण काश्यप वैदिक कर्मकाण्ड और औपनिषदिक ब्रह्मवाद का विरोधी था । वह न परलोक मानता था, न परलोक में भोगने वाला पाप-पुण्य । इस प्रकार वह स्वर्ग की कल्पना का भी विरोधी था। प्रकुध कात्यायन हर वस्तु को अचल और नित्य मानने वाला था। वह एक प्रकार के नियति वाद का माननेवाला था । वह आत्मा की गति को इतना निश्चित मानता था कि उसमें अपने शुभाशुभ कर्मों द्वारा किसी प्रकार का रद बदल सम्भव नहीं समझता था। संजय वेलठि पुत्त संशयवादी था। एक तरह से उसका दर्शन निराशावादी था। निगन्थ नाथपुत्त ( महावीर ) पार्श्वनाथ के उत्तराधिकारी, उनके मत के संशोधक और जैन धर्म के बहुत बड़े व्याख्याता थे। ये अपने युग के बहुत बड़े आध्यात्मिक नेता थे। इनका पारिवारिक सम्बन्ध उस काल के मध्य देश के प्रायः सभी प्रमुख राज-खानदानों से था। बिम्बिसार भी उनका रिश्तेदार था । बुद्ध की साधना-भूमि और सिद्धि-भूमि दोनों ही मगध है। बड़े मजे में कहा जा सकता है कि बौद्ध धर्म की जन्मभूमि मगध है। बिम्बसार बुद्ध का भी बहुत बड़ा प्रशंसक, भक्त और आश्रयदाता था। जैन और बौद्ध धर्म में एकता और भिन्नता बौद्ध धर्म का जन्म मगध में हुअा। जैन धर्म का प्रभाव ममय से

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