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विदेशियों के पास जो धन मिलता था, उसे उनके वारिसों
को दे दिया जाता था। ३. जनगणना समिति-इसका काम था नगर की जनता की
जन्म-मृत्यु का लेखा-जोखा रखना। यह लेखा-जोखा बहुत व्यापक तौर से होता था। पेशा, जाति, वर्ण, दास, दासी, नौकर, परिवार के प्राणियों की पूरी संख्या-लड़के, लड़कियाँ स्त्री, पुरुष आदि-आमदनी और खर्च सभी की तालिका
इस विभाग में प्रस्तुत रहती थी। ४. वाणिज्य व्यवसाय समिति--इसका काम व्यापार पर देख
रेख रखना था। एक से अधिक वस्तुओं का व्यापार करने वालों को उसी औसत से कर देना पड़ता था। वस्तु निरीक्षण समिति—यह समिति व्यवसायियों पर सतर्क दृष्टि रखती थी। औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादकों के लिये नये
और पुराने माल का मिश्रण अपराध करार दिया गया था। अनुचित लाभ लेने वालों को दण्ड भी दिया जाता था। कर समिति-इस समिति का काम था चुंगी वसूल करना। कुछ वस्तुओं पर विक्रय कर भी लगता था। उसका वसूल करना भी इसी समिति का काम था। इससे बचने का प्रयत्न
करने वाले को मृत्युदण्ड तक की सजा दी जाती थी। इनके अलावा सार्वजनिक भोजनालय, पुलिस, जेल, मनोरंजन और नागरिकों के स्वास्थ्य पर भी ध्यान रखना इस नागरिक शासन के अन्दर था। इस प्रकार सदस्यों की नगर सभा सम्पूर्ण नगर का सम्यक प्रकारेण शासन करती थी। इतिहास के विद्वानों का मत है कि जिस प्रकार का नगर शासन पाटलिपुत्र में था, उसी प्रकार का शासन देश के और भी अन्य महत्त्वपूर्ण नगरों में रहा होगा।