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( ५ ) सेना, न्याय और व्यवहार को सम्राट देखते थे। साम्राज्य के उच्च 'पदस्थ पदाधिकारियों की नियुक्ति, परराष्ट्र नीति तथा गुप्तचर विभाग का संचालन और साम्राज्य भर के आय-व्यय का निरीक्षण स्वयं सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य करते थे। इस प्रकार सम्पूर्ण मगध साम्राज्य की वास्तविक शक्ति सम्राट में केन्द्रित थी। पाटलिपुत्र का नगरशासन
मौर्य युग में पाटलिपुत्र मगध साम्राज्य की राजधानी थी। इसके चारों ओर लकड़ी की चौड़ी प्राचीर थी। इस प्राचीर के भग्नावशेष पटना के कुमड़हार ग्राम के पास रेलवे लाइन के उस पार एक गड्ढे में मिला है। प्राचीर के पास गहरी खाई थी। इस खाई की गहराई ४५ फिट और चौड़ाई ६०० फिट थी। प्राचीरों से लगे हुए ५७० बुर्ज थे। नगर में प्रवेश करने के लिये ६४ फाटक थे।
पाटलिपुत्र नगर के शासन के लिये ६ समितियों का एक समूह था और प्रत्येक समिति में ५-५ सदस्य थे। ये समितियाँ इस प्रकार थीं:
१. शिल्पकला समिति--इसका काम था औद्योगिक कलात्रों की
देख-रेख करना, उनके औजारों को सम्हाल रखना, उद्योग सामग्रियों का प्रबन्ध करना, कारीगरों के पारिश्रमिक का निर्णय करना और कलाकारों की रक्षा करना। कलाकारों
( कारीगरों) की इतनी हिफाजत की जाती थी कि उनका । अंग-भंग करने वाले को मृत्युदण्ड तक की सजा का
विधान था।
वैदेशिक समिति-इसका काम था विदेशियों की गतिविधि पर नजर रखना। विदेशियों के निवास, भोजन, औषध और अत्येष्ठि-क्रिया का भी प्रबन्ध यह समिति करती थी। मृत