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सेना का संगठन
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चन्द्रगुप्त मौर्य ने 'सर्वत्रान्तक' और 'उग्रसेन' नन्दों का नाश किया था, जिसका कोष अनन्त था और जिसकी सैनिक शक्ति अपार थी उसने पंजाब से ग्रीक विजेता सिकन्दर के आक्रमण - चिन्हों तक को निःशेष कर दिया था ; सेल्यूकस को परास्त किया था; और सम्पूर्ण भारत को जीतकर भारतभूमि में प्रबल पराक्रमी साम्राज्य कायम किया था । राजनीतिक दृष्टि से उसके सभी कार्य एक से एक बढ़ कर थे । पर इसी लिए उसकी सैनिक शक्ति प्रबल थी । महाभारत आदि ग्रन्थों तथा और भी भारतीय साहित्य में 'पदाति. हयदल, रथदल और गजदल' की चतुरंगिणी सेना का उल्लेख है । चन्द्रगुप्त मौर्य ने नौ सेना का भी बड़ा अच्छा संगठन किया था । यद्यपि सेना के सभी अंगों के सेनापति थे; पर उसका सम्पूर्ण अधिकार सम्राट के हाथों में केन्द्रित था । चन्द्रगुप्त उस युग के श्रेष्ठ सेनापति भी थे । सैन्य संगठन के तीन उपविभाग थे १ दुर्ग और रक्षा २ अस्त्र-शस्त्र निर्माण और शस्त्रागार तथा ३ सेना । चन्द्रगुप्त मौर्य की चतुरंगिणी सेना में पदाति ६ लाख, अश्वारोही ३० हजार, हाथी ३६ इजार और रथ २४ हजार थे । इनके अलावा नौ सेना भा थी । इस विशाल सेना के प्रबन्ध के लिये युद्ध का एक स्वतन्त्र विभाग था । इसके छतीस सदस्य थे, जो छः-छः की समितियों में विभक्त थे 1 ये समितियाँ . और उनके प्रबन्ध के अधिकरण निम्नलिखित थे :
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समिति सं० १
समिति सं० २
समिति सं० ३
समिति सं० ४
समिति सं० ५
समिति सं० ६
नौ सेना |
सैन्य साधन प्रस्तुत करने वाला अधिकरण |
पदाति ।
अश्व ।
रथ ।
गज ।