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( ५३ ) लिया । मगध में श्रमण परम्परा के अनुकूल वातावरण था। उसका प्रभाव सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य पर भी पड़ा; पर अपने जीवन काल में चाणक्य ने जैन और बौद्ध धर्म को राष्ट्रधर्म का रूप न लेने दिया। चणक्य की मृत्यु के बाद अशोक अभिषिक्त हुआ। अशोक पर बौद्धधर्म का प्रभाव पड़ा। अशोक ने बौद्धधर्म को राष्ट्रधर्म की सीमा तक चढ़ाया। यद्यपि अशोक के मंत्रियों को अशोक का यह धर्म न रुचा; पर उनमें कोई चाणक्य जैसा नहीं था, इसलिए अशोक को जब रोकना चाहिए तब नहीं रोक सके । यह सच है कि अशोक ने अपने काल तक मगध को सम्हाला; पर बाद में ऊँचे व्यक्तित्व के अभाव में, सन्यसंचालन-प्रक्रिया से रहित होकर, अहिंसा के ढोंग में बहकर मगध का मौर्य साम्राज्य सदा के लिए नष्ट हो गया। . दुर्बल और ढोंगी मौर्यों का उच्छेता ब्राह्मण ही था। नन्दों का उच्छेता चाणक्य भी ब्राह्मण था, पर वह गोद में एक क्षत्रिय को लेकर
आया और उस क्षत्रिय चन्द्रगुप्त को अभिषिक्त किया; किन्तु मौर्यों का उच्छेता 'पतञ्जलि अपनी गोद में ब्राह्मण को लेकर आया-पुष्यमित्र को लेकर । चाणक्य ने दिग्विजय की नीति चलायी ; पर उसने अश्वमेध नहीं किया। सम्भवतः उसके काल में जैन और बौद्ध परम्परा इतनी निकम्मी नहीं हुई थी कि उसे सहज ही अलग कर दिया जाता ; पर पतञ्जलिका काल दूसरा था। उसके काल में बौद्ध जैन परम्परा ने अपने को अराष्ट्रीय तक सिद्ध कर दिया था । अतः पतञ्जलि ने अश्वमेध की परम्परा चलायीजनमेजय के बाद ही बन्द हुई वैदिक अश्वमेध की परम्परा। और स्वयं 'पतञ्जलि पुष्यमित्र के अश्वमेध के ऋत्विज हुए-"इह पुष्यमित्रं याजयामः।" चाणक्य ने पंजाब से विदेशी शक्तियों के विजय-चिन्ह तक को मिटा दिया था। पतञ्जलि के काल में विदेशी शक्तियों को बौद्धों और जैनों ने सहारा दिया था। इसलिए पतञ्जलि के पुष्यमित्र ने विदेशी मिनान्डर की राजधानी साकल में पहुँच घोषणा की कि-"जो कोई मुझे