Book Title: Magadh
Author(s): Baijnath Sinh
Publisher: Jain Sanskruti Sanshodhan Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ ( ४१ ) महान अशोक अशोक विजयी हुआ; पर खून में नहाकर । उसके चारो ओर वेदना, चीत्कार, बुभुक्षा और हा-हाकार था । कलिंग ने अपनी स्वाधीनता के लिये अपना सब कुछ होम दिया था । इतना बड़ा त्याग बेकार न गया । उसने महान अशोक के सुसंस्कृत मानस में करुणा का रूप लिया । क्रूरकर्मा शोक का मानव हृदय करुणा से अभिभूत हो गया । उसका अन्तरतम अपने कृत्य की दारुणता से हिल गया । दिग्विजयी अशोक सहसा बदल गया । उसने अपनी दृढ़ मुट्ठी से तलवार को अलग कर दिया और रक्त-सिक चाहुत्रों को उठाकर प्रतिज्ञा की - 'अब से वह युद्ध द्वारा विजय न करेगा, वह प्रेम द्वारा दिग्वजय करेगा, धर्म विजय करेगा।' इस प्रकार अशोक का भेरी-घोष, धर्म-घोष में बदल गया । हिंसा का स्थान प्रेम, भ्रातृभाव और प्राणिमात्र की सेवा ने लिया । बौद्ध अनुश्रुतियों का कथन है कि अशोक सुषीम-पुत्र निग्रोध के कारण बौद्ध धर्म की ओर आकृष्ट हुआ और उपगुप्त द्वारा दीक्षित | परन्तु जिस घटना ने वस्तुतः उसको बदल दिया, वह कलिंग युद्ध था । अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया; पर वह सम्प्रदायिक बौद्ध कभी नहीं था । अशोक का धर्म था - संयम, भावशुद्धि, कृतज्ञता, दृढभक्ति, अन्तर और बाहर की सफाई, साधुता, दया, दान, सत्य ; मातापिता, गुरु और बड़े बूढ़ों के प्रति सेवा और श्रद्धा ; ब्राह्मणों, भ्रमणों, बन्धु-बान्धवों, दुखियों आदि के प्रति दान और उचित श्रादर । अशोक न केवल साम्प्रदायिकता से ऊपर था, बल्कि प्रारम्भ में तो उसने साम्प्रदायिकता को कम करने का प्रयत्न भी किया। उस काल में समाज में कलह के मुख्य कारण साम्प्रदायिक होते थे; इसलिए अशोक ने अपनी प्रजा में सहिष्णुता का उपदेश किया। स्वयं तो वह सारे धर्मों का आदर करता ही था, उसने अपनी प्रजा से भी वैसा ही श्राचरण कराना चाहा । इसीलिए उसने अपने शिला लेख में खुदवाया कि सारे धार्मों के

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70