________________
( १२ ) -कमजोर हो जाता है। समाज में भी अव्यवस्था पैदा होती है । इसलिए चोरी से दूर रहने की बात पार्श्वनाथ ने जो प्रचारित की सो तो समझ में आ जाती है। पर अपरिग्रह का प्रचार क्यों किया ? इसे समझने के लिये परिग्रह का जान लेना आवश्यक है । बृहत्कल्प-भाष्य में (८२५), श्रा० भद्रबाहु के अनुसार परिग्रह के दस भेद हैं :- . ____ "खेत, वास्तु ( मकान ), धन ( सोना-चाँदी ), धान्य ( चावल अादि अन्न), कुप्य (बर्तन ), संचय ( हिंग मिर्च आदि मसाले), शानिजन, दासदासी आदि, यान (पालकी रथ आदि) और शयन-वासन ।" . आध्यात्मिक साधना में तो इन परिग्रहों द्वारा वाधा पड़ ही सकती है । सामाजिक व्यवस्था के लिये भी इन परिग्रहों से बचना आवश्यक "था। पार्श्वनाथ ने खूब अच्छी तरह प्रचारित किया कि दास-दासियों को बिना मुक्त किये धर्म का जीवन, साधना का जीवन नहीं बिताया जा सकता। इसका एक प्रभाव यह भी हुआ होगा कि जो गरीब अथवा साधारण जन थे, उनके प्रति धनिकों में हीन दृष्टि का जोर नहीं बढ़ा होगा। फलतः जन साधारण कुछ ऊपर उठे होंगे । पर उत्तराध्ययन से यह सिद्ध है कि महावीर के पहले अपरिग्रह धर्म में शिथिलता आने लगी थी। उस शिथिलता को दूर करने के लिये ही महावीर ने नग्नाता पर जोर दिया। यह तीर्थंकर महावीर श्रेणिक बिम्बिसार के समय में थे। कहा जाता है कि बिम्बिसार अपनी रानी चेल्लना के प्रभाव से जैन हो गया। एक कथा है कि एक बार श्रेणिक बिम्बिसार शिकार खेलने जंगल में गये थे। जंगल में उन्हें एक जैन साधु समाधि लगाये मिल गये। बिम्बिसार ने किसी कारण चिढ़कर जैन मुनि के गले में एक मरा सर्प लपेट दिया। महल में वापस पाने पर उन्होंने अपनी रानी चेल्लना से इस घटना का उल्लेख किया । यह सुनकर चेल्लना बहुत दुखी हुई। वह पावापत्यिक -मुनियों से परिचित थी। उसने उक्त मुनि का दर्शन करना चाहा । चेल्लना