Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 13
________________ प्रस्तावना aasarai आज यह ज्योतिषसार :नामक ग्रन्थ पाठकोंके सामने उपस्थित करते हुए मुझे बड़ा ही श्रानन्द होता है। यों तो भारतीय प्राचीन ज्योतिषसाहित्य में फलादेश के भी कई छोटे मोटे अन्य विद्यमान है जिनमें अनेक प्रकट भी हो चुके हैं और हो भी रहे हैं। परन्तु यह कहने की कोई भावश्यकता नहीं, यह ग्रन्थ अपने ढङ्गको एक अनोखी चीज है, यह पाठकोंको माद्यन्त पढ़नेसे स्वयं ज्ञात होगा। ज्योतिषके फलित विषयसे संबन्ध रखनेवाली प्रायः सभी बातोंका इसमें संक्षेप में किन्तु सुचारुरूप से समावेश किया गया है। - मुझे खेद है कि इस ग्रन्थके प्रणेताके संबन्धमें कुछ भी ऐतिहासिक प्रकाश नहीं डाल सकता,क्योंकि ग्रन्थकारने स्वयं न अपने नामका ही कही पर स्पष्टरूप से उल्लेख किया है और न तो ग्रंथ-रचनाके समय का ही निर्देश किया है। हां, मंगलाचरण देखनेसे यह बात निर्विवाद है कि ग्रंथकर्ता जैन थे और ज्योतिष विषयका उनका ज्ञान असाधारण था। ___ ग्रन्थके अन्तमें प्रथम प्रकोणक समाप्तम्' यह लिखा है, इससे यह स्पष्ट होता है कि इस ग्रन्थके और भी प्रकरण होंगे, परंतु बहुत खोज करने पर भी मैं सम्पूर्ण ग्रन्थको प्राप्त नहीं कर सका हूं, इसलिये मैं लाचार हूं। इस प्रथम प्रकीर्णकी सिर्फ एक ही प्रति अहमदावाद निवासी श्रीयुत वकील केशवलालभाई प्रेमचन्द मोदी B. A. L. L. B. द्वारा मुझे प्राप्त हुई थी, इसलिये मैं उनका कृतज्ञ हूं। मूल ग्रन्थकी भाषा प्राकृत होनेसे इसका हिंदी अनुवाद भी कर दिया गया है, जिससे सर्व साधारणको इसे समझने में सुगमता हो। भाशा हैं कि ज्योतिषके प्रेमी-गण इस ग्रन्थको पपनाकर मेरे परिश्रम को सफल करेंगे और अनुवादकी त्रुटियों पर ख्याल न देकर सज्जनता का परिचय देंगे। कलकत्ता। भगवानदास जैन ता० ५-७-१६२३

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