Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 75
________________ हिन्दी भाषा टीका समेतः । वार को छोड़कर बाकीके नक्षत्र तथा वार को नियम आलोचना योग, तपस्या और उस की नन्दि आदि विधि करना । ५६ क्षौरकर्ममुहूर्त रोहिणि माहा विसाहा, ति उत्तरा भरण कित्तिआ य अणुराहा । इअ मुंडण लोयकए, इंदी वि न जीवए व रिक्खं ॥ १ ॥ भावार्थ - रोहिणी मघा विशाखा तीनों उतरा भरणी कृतिका और अनुराधा इन नक्षत्रों में मुंडन या लोचकर्म करानेसे इन्द्र भी नहीं जीवता है ॥ १ ॥ पुन: नवमी य चउत्थि चऊदिसि अट्ठमि छुट्टी अमावसी तिहिया । वारा सनि रवि मंगल, मुंडण लोयं न कारेई ॥ २ ॥ भावार्थ- नवमी चतुर्थी चतुर्दशी अष्टमी षष्ठी और अमाचाया इन तिथियों में, तथा शनिवार रविवार और मङ्गलवार -इन में मुंडन या लोच कराना नहीं ॥ २ ॥ पुनर्वसु तथा पुष्य, धनिष्ठा श्रवणे सदा । एभिश्चतुभि र्धिष्णैश्च, लोचकर्म तु कारयेत् ॥ ३॥ भावार्थ- पुनर्वसु पुष्य धनिष्ठा और श्रवण इन चारों ही नक्षत्रों में लोचकर्म करना अच्छा है ||३|| भद्रा ( विष्टि करण ) फल किण्हा ततिय दसमी, सत्तमि चवदसी धुरहि कल्लाणी । धवलं ते चउ गारिसि, अट्ठमि पुत्रिम पढमाए । १६६ ॥

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