Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 57
________________ हिन्दी भाषा-टोका समेतः। सर्वाक योगतिथि वार रिक्सा इक, मिलि अंकांइ कहिय सव्वंक। पण इग्गारस तेरस, सतर ओगणीस तेवीसं ।। १३६ ॥ पणवीसा गुणतीसा, इगतीस सइतीस एगयालीसा। तेयालीस इताला, पमुहा सव्वेहि मंगलं ।। १४० ॥ भावार्थ- तिथि वार और नक्षत्र ये तीनों के अंको को मिलाना, उसको सर्वाक योग कहते है, इन अंको का जोड़ ५।११ । १३ । १७ । १६ । २३ । २५ ॥२६॥ ३१ ॥ ३७॥४१ । ४३ । ४७ । ये हो तो शुभ है ।। १३६ ।। १४० ॥ प्रकारान्तरे सर्वाक योग वार तिथि रिसिधरिये एकह, बिमणा त्रिवणा चउगुणा करिय भाग सवि देइ पिहु पिहु, छए सत्त अट्टे वलगि वधत अंक चिहु अमि ग्गहु । आदि सून्य दुहदाईयउ, मझे लच्छि वियोग । अंति सून्य हुइ हाणिकर, सबके सुभ योग ।। १४१ ॥ भावार्थ:-वार तिथि और नक्षत्र ये तीनों के अंको को इकट्ठा कर तीन जगह रखना, उनको द्विगुना त्रिगुना और चौगुना करना उसको अनुक्रमसे छ सात और आठ से भाग देना, आधके शेषमें शून्य आवे तो दुःखदायक, मध्य शून्य आवे तो लक्ष्मी नाश कारक और अन्त्य शून्य आवे तो मृत्यु कारक है। सभी शेष में अंक बचे तो शुभ योग जानना ॥ १४१ ॥

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