Book Title: Jyotishsara Prakrit
Author(s): Bhagwandas Jain
Publisher: Bhagwandas Jain

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Page 91
________________ हिन्दी भाषा - टीका समेतः 1 ७५ इस मुआफिक ज्योतिश्शास्त्र मध्ये नवग्रह के पायेका प्रमाण कहा है || २५० से २५२ ॥ राशि पर बाद कौनग्रह कब फल दायक है लग्गे य फलं रवि भू, अद्धं छेयम्मि फलइ सनि चन्द्र । बुध सुक्के फल अर्द्ध, गुरुयं फलइ उत्तरयं ॥ २५३ ॥ भावार्थ- सूर्य और मङ्गल राशिको आदिमें, शनि और चंद्रमा अर्द्ध राशि भोगने पर, बुध और शुक्र राशिके मध्य में और गुरु राशिके उत्तरार्द्ध में फल दायक है ॥ २५३ ॥ पंच ग्रह वक्री तथा प्रतीचारके दिन संख्या और फलतेहुत्तरि तेवीसा, इग सउ तेरुत्तराइ पइताला । इग सय चाला मंङ्गल, पञ्च गह वक्कीय दिणमाणा ॥ २५४ ॥ तह अइयोरा भणिय, मङ्गल पमुहा य पनर दसहाय । पंणयाला पदसाय', अन्तो नव वीस वासरयं ॥ २५५ ॥ भूमोर अणावुट्ठी, बुद्धो वक्कीय रस खय'कारी । गुरुवक्की सुभिक्खं, वक्की भिगु करइ जण सुहय' ॥ २५६ ॥ मन्दो की कीर, पुहवी रोराइ रुण्ड मुण्डयं । धणं धन्न वत्थ नासइ, हवय रोगं बहू लोए ॥ २५७ ॥ भावार्थ - मङ्गल ७३ दिन, बुध २३, गुरु ११३ दिन, शुक्र ४५ दिन और शनि १४० दिन वक्री रहते है। तथा मङ्गल १५ दिन बुध १० दिन, गुरु ४५ दिन, शुक्र १० दिन और शनि १८० दिन अतीवारी रहते है ||

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